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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ प्राय: आज का मानव मानवता की ओर न जाकर दानवता की ओर जा रहा है, उसने पास में छुरी को रखना, अपशब्द या गाली बकना, चोरी या अपहरण करना, व्यभिचार करना, विविध तृष्णा को बढ़ाना, माद्य का सेवन करना, अण्डे खाना, जुआ में प्रवृत्ति करना, अभक्ष्य भक्षण करना आदि को अपना परम कर्तव्य और उन्नति का मार्ग समझ लिया है। यह सब अधर्म या अन्याय मांसाहार के कारण ही होने लगा है। मांस भक्षण से कुत्सितविचार, क्रूर स्वभाव और अनेक रोगों की उत्पत्ति हो जाती है। 1. "डॉ. अलेक्जेन्डर हेग, डा. एच.सी.मिन्केल.डॉ. जार्ज डब्लू किरले के मतानुसार मांसाहार से यूरिक
अम्ल की वृद्धि, दिल की बीमारी, गठिया, एक प्रकार का सिरदर्द, टी.वी. जिगर की खराबी इत्यादि रोगों
की उत्पत्ति होती है | 2. "स्काटलेन्ड के प्रसिद्ध डॉ. बेले के प्रयोगात्मक अध्ययन के अनुसार मांस भक्षण मानव को “कैंसर की
कैद' में डालता है "। 3. "मांस निमंत्रण देता है कीटाणुओं को। क्या आपको पता है कि एक औंस मांस में 1/1/2 करोड़ से 10
करोड़ तक कीटाणु होते हैं "। (मांसाहार का त्याग - भागलपुर प्रपत्र पृ. 1-2)
इसलिए मानव या किसी भी प्राणी को दीर्घ जीवन, सुखी जीवन, परोपकारी जीवन, विवेकी जीवन और धार्मिक जीवन प्राप्त करना है तो शाकाहार, शुद्धाहार और संयमित भोजन ग्रहण करना चाहिए ।
"पाश्चात्य डॉक्टरों ने मानव की शारीरिक आकृति और बनावट को देखते हुए यह निश्चित रूप से घोषित किया है कि मानव शाकाहारी प्राणी है।मानव की आंत, दंत, त्वचा और अवयव यही सिद्ध करते है कि मानव का प्राकृतिक भोजन शाक- भाजी आदि है अतएव वही भोजन मानव के लिए श्रेष्ठ और स्वास्थ्य वर्धक हो सकता है "| (मानव जीवन में अहिंसा का महत्व पृ. 39) अहिंसा पर विचारकों के विचार - • "महात्मा महावीर अहिंसा के अवतार थे। उनकी पवित्रता ने संसार को जीत लिया था"।
(वीरगौरव -महात्मा गाँधी) "अहिंसा सभ्यता का सर्वोपरि और सर्वोत्कृष्ट दरजा है यह निर्विवाद सिद्ध है"
(डॉ. एल.पी.टेसिटोरी इटली)। "जैनग्रन्थों में अहिंसा यथार्थ रूप में कही गई है"।
(प्रोफेसर चतुरसेन जी शास्त्री). "प्राणीमात्र पर दया का भी अमूल्य सिद्धांत है "।
(प्रो. फणीभूषण एम.ए.काशी) • "यदि अहिंसा धर्म को देश मानता होता तो परस्पर द्वेषाग्नि न फैली होती और न विदेशी विधर्मियों का यहाँ शासन ही जमता"।
(अहिंसा पत्र पं. रामचरित उपाध्याय गाजीपुर) (160
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