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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ करती है उसे तीर्थकर कहते है उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी काल में 24-24 तीर्थकरों की परम्परा का जन्म धारण करना अनादि कालिक प्रवाह है । अवसर्पिणी काल (हासयुग)के 24 तीर्थकरों की परम्परा में भगवान महावीर 24 वे तीर्थकर थे। उनकी सत्ता इतिहास एवं विज्ञान से सिद्ध होती है। (1) मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूँ कि भ. महावीर के अहिंसा सिद्धांत से ही विश्व कल्याण तथा शान्ति की स्थापना हो सकती है।
(आचार्य श्री काका कालेलकर) ____ आज के विद्वान केवल पुदगल (अचेतन द्रव्य) को ही जानते है परन्तु जैन तीर्थकरों ने आत्मा की भी खोज की है।
(प्रो. विलियम) जर्मनी के डॉ. अनेस्ट लायमेन कहते हैं - श्री वर्धमान महावीर केवल अलौकिक महापुरूष ही न थे। बल्कि तपस्वियों में आदर्श, विचारकों में महान, आत्मिकविकास में अग्रसर दर्शन कार और उस समय की सभी विद्याओं में प्रवीण (Expert) थे। जैन फ्लासफरों ने जैसा पदार्थ के सूक्ष्मतत्त्व का विचार किया है उसको देखकर आज कल के फ्लासफर बड़े आश्चर्य में पड़ जाते हैं और कहते है महावीर स्वामी आजकल की साईन्स के सबसे पहले जन्म दाता है।
(वर्धमान महावीर प्रस्ताव पृ. 23-24 प्रकाशन जैनमिशन सहारनपुर) भगवान महावीर द्वारा प्रणीत अहिंसा सिद्धांत विश्वकल्याणकारी, अक्षय और महान् है। वह सर्वधर्म सम्मत, सर्वदर्शनों द्वारा समर्थित, सर्वराष्ट्रों द्वारा स्वीकृत एवं नेता, विचारक सन्त और लेखकों द्वारा सम्मान्य है । अहिंसा परमब्रह्म के समान, श्रेष्ठ आत्मा का गुण और ब्रह्मचर्य महाव्रत है । “भ. महावीर अहिंसा के अवतार थे उनकी पवित्रता ने संसार को जीत लिया था "। (महात्मा गाँधी ) भ. महावीर पृ.77
___ "यदि जनता सच्चे हृदय से अहिंसा का व्यवहार करने लग जाये तो संसार को अवश्य सुखशान्ति प्राप्त हो जाये" (सरहदी गाँधी अ.ग.खां.) वर्धमान महावीर पृ. 94 अहिंसा विश्वशान्ति का मूलमंत्र है ।सदैव उपासना करने योग्य है।
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