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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ शासन चल रहा था । कुछ समय बाद दोनों गणसंघों के राजाओं ने बैठकर परस्पर सन्धि कर ली और विदेहगणराज्य विशाल वैशाली संघ में मिला दिया गया। इस संघ का नया नाम 'वज्जी संघ घोषित हुआ। इस विशाल गणसंघ की राजधानी वैशाली घोषित की गई। इस विशेषकारण से भी इस नगरी का नाम वैशाली रखा गया।
वर्तमान में यह स्थान बसाढ़ नाम ग्राम से पहचाना जाता है । इसके आसपास आज भी बसाढ़ के अतिरिक्त वणिज ग्राम, कमन, छपरागाही, वासकुंड और कोल्हा आबाद है। समय के परिवर्तन के साथ यद्यपि प्राचीन नामों में अधिकांश परिवर्तन अवश्य हो गया किन्तु इन नामों से प्राचीन नगरों की पहचान अवश्य की जा सकती हैं, जैसे वैशाली, वणिज्यग्राम, कौल्लाग, सन्निवेश, कर्मारग्राम और कुण्डपुर आदि।
बौद्ध साहित्य के अनुसार वैशाली में प्राचीनकाल में कुण्डलपुर और वणिज्यग्राम भी मिले हुए थे। दक्षिण पूर्व वैशाली, उत्तरपूर्व में कुण्डलपुर ,पश्चिम में वणिज्यग्राम था । कुण्डलपुर के आगे उत्तर पूर्व में कोल्लाग नामक एक सन्निवेश था, उसमें प्राय: ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय रहते थे। इसी कोल्लाग सन्निदेश के पास ज्ञातृवंशीय क्षत्रियों का द्युतिपालाश उद्यान और चैत्य था । इस विशाल गणराज्य की सीमाएं इस प्रकार थीं।
पूर्व में वन्यदेश, पश्चिम में कौशल देश और कुशीनारापावा जो मल्लों के गणराज्य थे। दक्षिण में गंगा और गंगा के उस पार मगध साम्राज्य था। उत्तर में हिमालय की तलहटी का वन्यप्रदेश बौद्धग्रन्थों के अनुसार इस गणराज्य का विस्तार 2300 वर्गमील में था। सातवीं शताब्दी में हावानसांग नाम का एक बौद्ध यात्री भारत आया था, उसने लिखा है कि इस गणराज्य का क्षेत्रफल पांच हजार मील 5925 क्षेत्र है। (भारत के दि. जैन तीर्थं द्वि. भा. प्रका. । कमेटी बंबई 52-54)
जैन साहित्य में वैशाली संघ के गणपति का नाम महाराजचेटक दिया गया है जो विशाल गणतंत्र अधिनायक थे। महाराजा चेटक और महारानी सुभद्रा के सात पुत्रियां कुल की गौरवशालिनी थी प्रियकारिणीत्रिशला, सुप्रभा प्रभावती, सिप्रादेवी, सुज्येष्ठा, ज्येष्ठा, चेलना, चन्दना चैटक की माता का नाम यशोमती और पिता का नाम केक प्रसिद्ध था।
इन सात पुत्रियों में चेटक की ज्येष्ठ पुत्री त्रिशला प्रियकारिणी का विवाह संस्कार, विदेह देश के कुण्डपुर में नाथवंश के शिरोमणि महाराजा सिद्धार्थ के साथ हुआ था। इन दोनों के आत्मज तीर्थंकर महावीर थे। महाराजा चेटक के दश पुत्र कुल के आभूषण हुए थे।
धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सुकुंभोज अकम्पन, पतंगक, प्रभजन, प्रभात । उपसंहार -
विश्व की 24 तीर्थंकर परम्परा में तीर्थकर महावीर अन्तिम तीर्थंकर थे जिनका पवित्र जन्म आज से 2592 वर्ष पूर्व विहार प्रान्तीय वैशाली के कुण्डपुर नगर में हुआ था। तीर्थंकर महावीर का अस्तित्व, इतिहास, पुरातत्त्व पुराण और प्रतिमाओं से सिद्ध होता है । इसी प्रकार उनके जन्म क्षेत्र की ख्याति भी इतिहास एवं पुराणों से ज्ञात होती है । वैशाली में गणतंत्र राज्य का उदय हुआ, इसके अधिपति महाराज चेटक नियुक्त हुए।
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