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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ 11. न्यायपूर्ण शासन की मान्यता, सहयोग और सुरक्षा । 12. सत्यता एवं नीतिपूर्वक व्यापार करना। 13. धार्मिक - राष्ट्रीय सामाजिक उन्नति में समानाधिकार । 14. धार्मिक साम्प्रदायिक सामाजिक द्वेष तथा द्रोह का अभाव । 15. व्यायाम आदि साधनों द्वारा शक्ति का विकास करना। आज भी स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए उक्त समाजवाद की अत्यावश्कता है।
यह सर्वविदित है कि भारतीय श्रमण परम्परा में जैन धर्म में चिंतन का विशेष महत्व है। ऋषभदेव के समय से लेकर आज तक यह चिंतन धारा अक्षुण्य रूप से प्रवाहित हो रही है। समय - समय पर अनेक मुनियों, आचार्यो एवं विद्वानों ने इस चिंतनधारा को समृद्ध बनाने के लिए प्रयास किए हैं जिन के परिणामस्वरूप जैन - चिंतन के विभिन्न पक्ष उभर कर सामने आये हैं। जैन तत्त्वमीमांसा, आचार शास्त्र, धर्म एवं ज्ञानमीमांसा के क्षेत्र में विभिन्न महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं और जैन चिंतन के इन पक्षों पर निरंतर कार्य हो रहा है। इस वैचारिक परम्परा का सामाजिक पक्ष अभी तक लगभग अछूता ही रहा है। अत: इस समाज का मुख्य लक्ष्य जैन चिंतन के सामाजिक पक्ष को सामने लाना है। हमें यह देखना है कि क्या इस सम्प्रदाय में व्यक्तिगत मोक्ष विद्या की ही विवेचना की गयी है अथवा किसी नवीन समाज - संरचना की भी कल्पना उपलब्ध है। किसी भी वैचारिक परम्परा द्वारा दिए गये आदर्शों को प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार के समाज की भी आवश्यकता होती है । जैन आदर्शों के अनुरूप जिस समाज की आवश्यकता है उसकी विवेचना करन भी हमारा उद्देश्य है । यह सम्भव है कि जैन आचार्यो की रचनाओं में सुसंबद्ध समाज - दर्शन उपलब्ध न हो, किन्तु इन रचनाओं में यत्र - तत्र बिखरे समाज - दर्शन के तत्त्वों को एकत्र कर के समाज संबंधी कतिपय सिद्धांतों की प्राप्ति हमारा मुख्य लक्ष्य है।
वर्तमान युग में समाज - दर्शन को अत्याधिक महत्व दिया जा रहा है। पश्चिमी देशों में इस विषय पर पर्याप्त चिंतन हो रहा है। कतिपय समकालीन भारतीय विचारक भी समाज संबंधी समस्याओं पर चिंतन करने में संलग्न रहे हैं। गाँधी, विनोबा, तिलक, अरविन्द, इत्यादि समकालीन भारतीय विचारकों ने सुसम्बद्ध समाज - दर्शन देने का प्रयास किया है। वे आधुनिक होते हुए भी परम्परा से जुड़े रहे । यही उनके चिंतन की विशेषता है। अत: जैन आचार्यों के समाज संबंधी चिंतन को इन आधुनिक विचारकों के परिप्रेक्ष्य में देखना हमारी इस रचना के लक्ष्य के अनुरूप होगा।
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