________________
कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ विश्व को ध्वंसात्मक शक्तियों से रोक नहीं सकते। ऐसी स्थिति में विध्वंस से बचने के लिए विज्ञान तथा आध्यात्मिक अहिंसा दर्शन के मध्य एक पुल हमें बचा सकता है "।
(जवाहरलाल नेहरू : अहिंसा वाणी वर्ष 8, अंक 9 दिसम्बर 58) __ "मतभेदों को दूर करने के लिए हिंसात्मक युद्ध करना या खून बहाना मानवता के हित में नहीं है। आज देश - देश के बीच का अंतर समाप्त हो गया है और युद्ध रहित संसार में ही आज की सुरक्षा है।" (अमरीकी राष्ट्रपति आइजन हावर, अहिंसा वाणी दिसम्बर 1959, देहली में राज भोग के समय उद्गार)।
"यदि जनता सच्चे हृदय से अहिंसा का व्यवहार करने लग जाये तो संसार को अवश्य सुख शान्ति प्राप्त हो जाये"।
(सरहदी गाँधी अब्दुलगफ्वार खाँ - वर्धमान महावीर पृ. 94) 6. जैन दर्शन का स्यावाद (अनेकान्तवाद) एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। उसकी परिभाषा जैनाचार्यो द्वारा प्रणीत है - "अनेकान्तात्मकार्थ कथनं स्याद्वाद" (अकलंक आचार्य, लधीयस्त्रग्रन्थ/7 वीं शती वि. उत्त.) अथवा "अर्पितानर्पितसिद्धेः" (उमास्वामी: तत्त्वार्थ सूत्र: अ. 5 सूत्र 32)।
भावसौन्दर्भ - एक पदार्थ में स्वभावत: अविरोधी अनंत धर्मो की सत्ता का कथन अथवा परस्पर विरोधी दो धर्मो की अपेक्षाकृत सत्ता का कथन करना अनेकान्तवाद है तथा एक पदार्थ में परस्पर विरोधी दो धर्मो का अपेक्षाकृत अथवा मुख्यता -गौणता से कथन करना स्यावाद कहा जाता है। जैसे एक आत्मा में ज्ञान दर्शन सुख शान्ति, शक्ति, अगुरू लघु, अवगाहनत्व, सम्यक्त्व, सूक्ष्मत्व ये विशेष गुण तथा अस्तित्व, वस्तुत्व आदि सामान्य गुणों की सत्ता है । अथवा = एक द्रव्य द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा नित्य है और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा अनित्य है । अथवा एक ही मनुष्य पुत्र की अपेक्षा पिता है एवं स्वपिता की अपेक्षा पुत्र है, अपने मामा की अपेक्षा भानजा है एवं अपने भानजा की अपेक्षा मामा है इत्यादि। वैज्ञानिकमत -
अमेरिका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. डा. आर्चीब्रह्म पी. एच. डी ने अनेकान्त के महत्व को पत्रों में स्वीकृत किया हैं
(दा वायस आफ अहिंसा, अंक 1 पृ. 3) जर्मन के विज्ञान योगी सर अल्वर्ट आइन्स्टाइन ने अपने युग में सन् 1905 में सापेक्षवाद (TheTheroy of Relativeity) थिओरी आफ रिलेटिव्हिटी का आविष्कार कर, विविध समस्याओं के समाधान में और दैनिक जीवन व्यवहार में सापेक्षवाद का उपयोग किया। सापेक्षवाद ही स्यादवाद का पर्यायशब्द है । स्याद्वाद के विषय में आपके विचार, जो अंग्रेजी से हिन्दी में अनूदित है।
_"हम सभी मानव अल्प शब्द ज्ञान वाले हैं, इसलिए केवल सापेक्षवाद को ही जानने में समर्थ हो सकते हैं। वस्तुओं के निश्चय पूर्ण सत्य को तो केवल विश्व दृष्टा ही जानने में समर्थ है । स्पष्ट भाव यह है कि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org