________________
कृतित्व / हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ काशीप्रसाद जायसवाल और डा. ए. वनर्जी शास्त्री ने इन मुद्राओं को जिन मूर्ति से ही पहिचाना था मोहनजोदड़ो की मुद्राओं में किसी-किसी पर बैल की आकृति भी बनी है जो ऋषभदेव का चिन्ह है । इसीलिए प्रो. 1 रामप्रसाद जी चंद्रा ने इनको ऋषभमूर्ति का पूर्व रूप माना था । श्री डा. प्राण नाथ काशी हिन्दु विश्वविद्यालय पूर्व कुलपति विद्यालंकार ने एक मुद्रा पर "जिनेश्वर " शब्द को पढ़ा है, ऋषभदेव को जिनेश्वर शब्द से भी कहा गया है। एक मुद्रा शील क्र. 44 से ऐसा भी दृश्य प्रतिभासित होता है कि ऋषभदेव के पुत्र सम्राट भरत, भगवान् ऋषभदेव की विनय कर रहे हैं । भरत के नाम इस देश का नाम भारत प्रसिद्ध हुआ । ("आदि तीर्थंकर भ. ऋषभदेव : " लेखक - डा. कामता प्रसाद सं. जैन मिशन एटा (उ.प्र.), प्र. स. 1959 )
इस प्रकार प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का अस्तित्व उक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है । ऋषभदेव से प्रवाहित यह तीर्थंकर परम्परा अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर महावीर तक समाप्त होती है। इस समय ती. महावीर धर्म तीर्थ चल रहा है । भगवान् महावीर का अस्तित्व भी इतिहास, पुरातत्त्व, तीर्थ, मंदिर मूर्तिलेख और संस्कृति से सिद्ध होता है ।
2. कतिपय प्रमाण
(1) श्री दि. जैन मंदिर पावापुर (विहार) में भ. महावीर का निर्वाणक्षेत्र, तालाब के मध्य निर्मित मंदिर में महावीर की प्राचीन मूर्ति एवं चरण चिन्ह हैं ।
(2) पुरातत्त्व संग्रहालय मथुरा उ.प्र. में कंकाली टीका मथुरा से प्राप्त, आयाग पट पर अन्य तीर्थंकरों के साथ भ. महावीर की प्रतिमा विद्यमान है। समय कुशाणकाल एवं गुप्तकाल ।
(3) प्राचीन क्षेत्र खजुराहो में महावीर की पाषाणमयी जिनमूर्ति
(4) "प्रिन्स अलवर्ट एण्ड विक्टोरिया संग्रहालय लन्दन" में उड़ीसा से प्राप्त ऋषभदेव और महावीर की प्राचीन मूर्तियों का पट्ट है ।
(5) वाडली से प्राप्त ईशापूर्व 374 का शिलालेख, जिसमें भ. महावीर का उल्लेख है, यह स्थान राजस्थान में है ।
( 6 ) भ. महावीर एवं अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियां (10वीं शती की) जो दाता के भूगर्भ से प्राप्त एवं मेरुमूर्तियां प्रतिष्ठापूर्वक मंदिर जी में विराजमान हैं।
(7) मु. कागली, ता. हरपनहल्ली, जि, वेलारी से प्राप्त भ. महावीर की धातु प्रतिमा जो मद्रास के संग्रहालय में सुरक्षित है। इस विषय में 25 प्रमाण प्राप्त हैं। इस प्रकार की ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर और अंतिम ती. महावीर का अस्तित्व सिद्ध हो जाने पर मध्य के 22 तीर्थंकर जैन दर्शन और विज्ञान से स्वयमेव सिद्ध हो जाते हैं एवं उनके सिद्धांत भी ॥
3.
(डा. कामता प्रसाद: अहिंसावाणी: तीर्थंकर महावीर विशेणांक) जैन दर्शन • शौरसेनी प्राकृत भाषा में महामंत्र ( मूलमंत्र ) णमो अरिहन्ताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ।
(आचार्य पुष्पदन्त: वनवास देश (कर्नाटक) वी.नि.सं. 633)
Jain Education International
203
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org