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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मार्गशिरकृष्णदशमी -हस्तोत्तर - मध्यमाश्रिते सोमे । षष्ठे न त्वपराण्हे भक्तेन जिन: प्रवद्वाज ॥
(निर्वाणभक्ति श्लोक 06-7-8) विहारप्रान्त के ज्ञातृवन मे चौबीस प्रकार के परिग्रह का त्याग करते हुए योगी महावीर ने संयम की साधना की। इसी समय वीर की आत्मा में चतुर्थ मनः पर्ययज्ञान का विकास हुआ। मोनधारणकर अनशन आदि बारह प्रकार के तप की साधना करते हुए योगिराज महावीर का एक युग (12वर्ष) व्यतीत हो गया।
'मन:पर्ययपर्यन्त: चतुर्ज्ञानमहे क्षण : । तपोद्वादशवर्षाणि चकार द्वादशात्मकम् ॥'
(हरिवंश पुराण अ - 2 श्लोक 056) इस द्वादशवर्षीय तपस्याकाल में योगिराज महावीर ने राजगृह, चम्पा मद्दिया, वैशाली, मिथिला, वाराणसी, कौशाम्बी, अयोध्या, श्रावस्ती, वज्रभूमि, शुभ्रभूमि, नालन्दा, तक्षशिला आदि विविध विद्याकेन्द्रों में प्रवास कर सिद्धांतों का प्रतिपादन किया । आमलकप्पा , कयंगला, काकन्दी, कम्पिला, तुंगिया, अपापा, श्वेताम्बिका, वाणिज्यग्राम, अस्थिकग्राम आदि अनेक ग्राम पुर, खेट, मंडम्ब, कर्वट, स्थानों में पदयात्रा करते हुए कल्याणकारी तत्वों का उपदेश दिया।
आपकी शान्तिपूर्ण तपस्या से प्रभावित होकर न केवल मानव समाज, अपितु देव समाज भी आप की आदरभाव से अर्चा, स्तुति एवं वंदना करता था। अत: श्री पूज्यपाद आचार्य ने आपको 'अमर पूज्य ' विशेषण प्रदान किया है -
ग्रामपुरखेटकर्वटमटंवधोषाकरान् प्रविजहार। उग्रैस्तपोविधानै दशवर्षाण्यमर पूज्य : ॥
(निर्वाण भक्ति श्लोक 10) एक समय महायोगी महावीर विहार करते हुए उज्जैननगरी पधारे। उन्होंने वहाँ के अतिमुक्तक नाम के स्मशान में प्रतिमायोग धारण किया। उस समय वहाँ के निवासी रूद्र ने भयंकर रूप धारण कर उनको ध्यान से विचलित करने का प्रयत्न किया । इस उपसर्ग के समय महावीर अपने ध्यान योग से जरा भी विचलित न हुए। इससे प्रभावित होकर रूद्र ने क्षमा याचना कर महति महावीर कहते हुए आपकी स्तुति को किया। महति महावीराख्यां कृत्वा विविधस्तुति: ........अमत्सर: अगात्।" (भ. महावीर, जीवनदर्शन पृ. 24)
इस प्रकार महर्षि महावीर ने तपश्चर्या काल में सार्वकालिक योग, ध्यान योग, अनशनयोग, उत्सर्गयोग, स्वाध्याययोग, आसन योग, वर्षायोग, शीतयोग, ग्रीष्म योग, एवं प्रतिक्रमण योग, ज्ञानयोग, दर्शनयोग, और आचार योग के माध्यम से आत्मसाधना को ऋद्धिसिद्धियों का आधार बनाया।
4. ईसासन से लगभग 556 वर्ष पूर्व वैशाख शुक्ल दशमी के दिन संध्या समय, हस्तोत्तरनक्षत्र के
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