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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ उदयकाल में अल्पफल को देती है। जैसे किसी पुरूष के भाव एक क्विन्टल मछली मारने के थे पर वह किसी कारण से एक ही मछली मार सका तो उसको अल्पहिंसा से अधिक हिंसा फल की प्राप्ति हुई और किसी पुरूष का विचार एक ही मछली को मारने का था परन्तु मालिक की कठोर आज्ञा के कारण उसको एक हजार मछलियाँ मारना पड़ी तो उसको बहुत हिंसा भी अल्पहिंसा के फल को देने वाली होती है। यदि एक साथ मिलकर दो व्यक्ति किसी को मारते हैं तो जिसके भाव तीव्र कषायरूप हों उसको हिंसा का अधिक फल और जिसके भाव मंदकषायरूप हो उसको हिंसा का अल्पफल प्राप्त होता है। कोई हिंसा, हिंसा प्रारंभ करने के पहले ही फल को देती है। कोई हिंसा, हिंसा कर चुकने पर भी फल को देती है। कोई हिंसा, हिंसा का प्रारंभ करके पूर्ण न करने पर भी फल को देती है। सारांश - कषायभावों के अनुसार फल होता है। एक पुरूष हिंसा को करता है, परन्तु उसका फल अनेकों को प्राप्त होता है और अनेक पुरूष हिंसा को करते हैं परन्तु उसका फल एक पुरूष भोगता है । जैसे अनेक पुरूषों ने रूपये देकर या भय दिखाकर एक पुरूष को किसी के मारने के लिए तैयार किया, तो उसके उस पुरूष को मारने पर हिंसा का फल अनेक पुरूषों को प्राप्त हुआ। इसी प्रकार किसी सेनापति ने एक हजार सैनिकों को, किसी राजा को मारने के लिए आर्डर दिया तो सैनिकों के मारने पर एक सेनापति को हिंसा का फल प्राप्त होता है। किसी पुरूष को हिंसा उदयकाल में एक ही हिंसा के फल को देती है और किसी पुरूष को वही हिंसा उदयकाल में बहुत अहिंसा के फल को देती है |धर्म शास्त्र में कथा का उल्लेख मिलता है कि किसी वन की गुफा में मुनिराज ध्यान कर रहे थे। उसी समय एक सिंह उनको खाने के लिए अंदर जाना चाहता है परन्तु गुफा के द्वार पर मुनि रक्षा हेतु बैठा हुआ शूकर सिंह को अंदर नहीं जाने देता।गुफा के बाहिर दोनों का भीषण संघर्ष होता है । फलस्वरूप सिंह मरकर नरक जाता है और शूकर मरकर स्वर्ग जाता है। यहाँ पर उसी हिंसा ने सिंह को हिंसा का फल दिया और शूकर को अहिंसा का फल दिया। किसी पुरूष को अहिंसा उदयकाल में हिंसा के फल को देती है और किसी पुरूष को हिंसा उदयकाल में अहिंसा के फल को देती है। जैसे किसी पुरूष ने किसी व्यक्ति को जान से मारने के लिए तालाब में फैक दिया परन्तु वह पुरूष पुण्य के उदय से तालाब में कोई काष्ठखण्ड प्राप्त कर तैरता हुआ किनारे लग गया तो उस पुरूष द्वारा हिंसा न होने पर भी घात करने का लक्ष्य होने से हिंसा के फल का भागी वह फैकने वाला पुरूष होगा। तथा जैसे किसी डॉक्टर ने किसी रोगी को अच्छा करने के लिए पेट का आप्रेशन किया, परन्तु वह रोगी खून कम होने से सहसा मर गया । यहाँ पर डॉक्टर सा. के द्वारा की
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