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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ कला सिखाते थे। जीवन में समाज के बीच में कैसे बैठना, कैसे उठना कैसे व्यवहार करना इन सभी बातों का ज्ञान कराते थे हमारे जीवन को धार्मिक बनाने में पंडित जी का ही योगदान है इसलिये वह हमारे जीवन
प्रकाशक हैं कभी भी पंडित जी के घर पहुँच जाते थे तो अपने खाने - पीने की वस्तु में से मुझे भी दे देते थे कि लो सुदीप मीठा मुँह करो। ऐसा वात्सल्य हमें अपने जीवन में किसी से नहीं मिला, जो एक गुरु से प्राप्त हुआ है। अपनी दिनचर्या को समय से चलाओ, प्रत्येक कार्य का अपना समय होता है, समय की सीमा
बाहर कार्य शोभा नहीं देता, जैसे समय से सामायिक करना, समय पर पूजा करना और समय पर भोजन करना, प्रत्येक कार्य अपने समय से करते रहो, जीवन में जागृति बनी रहेगी तथा जीवन का लक्ष्य बनाओ, कि पढ़कर के क्या करना है जीवन का प्रत्येक कार्य धर्म से जुड़ा रहना चाहिये, धर्म बिना कार्य शोभा नहीं पाता, ऐसी शिक्षा हमें पंडित जी हमेशा दिया करते थे । जो हमारे जीवन को प्रकाशित कर गये, ऐसी दिवंगत आत्मा को हमेशा प्रणाम करता रहूँगा और उन्हीं के बताये मार्ग पर चलता रहूँगा इसी शुभाकामना साथ विराम लेता हूँ ।
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