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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ श्रद्धा के मंदिर
राजेन्द्र सुमन
चकराघाट, सागर मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता है कि भारत वर्ष के ख्याति प्राप्त जिनवाणी सेवक तथा श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, के प्राचार्य का स्मृति ग्रन्थ (साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ) प्रकाशित होने जा रहा है। मां जिनवाणी की सेवा करने का शुभाषीष पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य जी को पू. वर्णी जी महाराज द्वारा प्राप्त हुआ था जिसे उन्होंने जीवन पर्यन्त पालन किया। वे राष्ट्रीय स्तर के सफल प्रवाचक, सफल लेखक तथा छात्र हितैषी आदर्श अध्यापक थे। मुझे चौधरन बाई मंदिर पाठशाला में स्क. पंडित जी से धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनका सदैव शुभाशीष मुझे मिलता रहा, तथा मैंने भी स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन में सदैव अपनी तत्परता दिखाई है तथा ग्रन्थ प्रकाशन में पूर्ण सहयोगी बनकर ग्रन्थ की समाजोपयोगी सफलता चाहता हूं। उनके गुणों का सदैव स्मरण करता रहूंगा। आत्मीय शुभकामनाओं सहित
व्यक्तित्व की विशालता
पंडित राजेन्द्र कुमार जैन
वर्धमान मेडीकल शाहपुर हिमालय की हिम की शुभ गगन स्पर्शी चोटियों का वात्सल्य जब अगणित निर्झरों में, सरिताओं में विगलित होता, तब देश की बंजर भूमि उर्वरक होकर समृद्धता प्रदान करती है। ऐसे ही हमारे पूज्य दादा श्री पंडित दयाचंद जी साहित्याचार्य जिनकी उदात्तता ने सैकड़ों हजारों छात्रों में ज्ञान की जल राशी बहाकर उनकी संकीर्णता तथा अज्ञान की बंजर भूमि को ज्ञान की निर्झरणी से भर दिया है। उनके व्यक्तित्व को देख ऐसा प्रतीत हुआ कि हिमालय भी उनके व्यक्तित्व को देख शर्माकर आप पिघल रहा है।
उन्होंने निष्कंप दीप शिक्षा की भांति अपने जीवन को तिल तिल कर जलाया। तभी इस बुंदेलखंड की माटी को ज्ञान का प्रकाश मिल सका है। नीरव वन प्रांतर के अंधकार को चीरने के लिए एक दीप काफी है। उसी प्रकार ज्ञान रश्मियां अज्ञान अंधकार को चीरने में समर्थ है। जिसे पूज्य दादाजी ने अपने जीवन भर फैलाया। पंडित जी के त्याग की विशालता ने सागर नगर की विशाल संस्था में अपना समर्पण देकर यहां पढ़ने वाले छात्रों को ज्ञान की रोशनी देकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, साथ भगवान महावीर के अपरिग्रह सिद्धांत को अपने जीवन में उतार कर समाज के समक्ष अपना आदर्श प्रस्तुत किया।
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