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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ गुरु के गुणगाने को कितना भी लिखा जाए उतना कम है स्याही व कागज कम पड़ सकता है किन्तु गुरु के त्याग तपस्या को लिखना कम नहीं हो सकता, मैं तो अपने आप को सौभाग्य शाली मानता हूँ कि मुझे श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय में पढ़ने का सौभाग्य मिला और मिला सौभाग्य पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य, पं. माणिकचंद जी न्यायाचार्य, पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य का मंगलमयी सानिध्य । पंडित जी से मिलने जब भी मोराजी जाता था तो पंडित जी का रोम रोम रोमांचित हो जाता था वे अत्याधिक प्रशन्न होते थे और तुरंत ही किरण दीदी को आवाज देते थे राजकुमार को कुछ खिलाओं और दीदी भीतर से पहले से ही नास्ता की प्लेट सजाकर ले आती थीं।
उनका समूचा जीवन जिनवाणी आराधना में व्यतीत हुआ और अंत जीवन भी शांतिपूर्ण व्यतीत हुआ साहित्य की सर्जना का फल उन्हें मोक्षफल की ओर ले जावेगा ऐसे साहित्य के मनीषी अपने गुरु को परोक्ष प्रणाम।
श्रद्धा भरी दृष्टि
पं. उदय चंद शास्त्री, प्रतिष्ठाचार्य
मकरोनिया सागर साहित्य मनीषी श्रद्धेय पं. जी का जीवन निरंतर सम्यकज्ञान की अलख जगाने में बीता, निस्पृही भाव से ज्ञान की धारा जन जन तक प्रवाहित करने वाले पंडित जी को मैंने साक्षात कई बार इस चिंतन में डूबे हुए देखा। वे बच्चों को धर्म की तह तक पहुँचाने का सदैव प्रयत्न करते रहते थे।
वर्णी जी की अनन्य शिष्यता उन्हें अंत समय तक स्वीकृत रही उनका जीवन वर्णी जी के चरणों से प्रारंभ हुआ तथा अध्ययन से अध्यापन तक का सम्पूर्ण काल वर्णी जी की संस्था को ही समर्पित रहा। श्री गणेश संस्कृत महाविद्यालय मोराजी में जहाँ आपने लगभग 15 वर्ष अध्ययन किया वही आपने विद्यालय में निरंतर 1951 से 2006 जनवरी तक अध्यापन कार्य किया था। यहाँ यह स्मरणीय है कि पंडित जी ने वर्ष 2001 से 2006 तक अवैतनिक कार्य कर वर्णी जी के प्रति महान कृतज्ञता ज्ञापित की है।
___ आप एक कुशल अध्यापक के साथ सफल प्रशासक भी रहे है कि 1983 से 2003 तक आपने संस्था के प्राचार्य का कार्यभार संभाला है अनेक उपाधियों से विभूषित पंडित जी को सागर वि.वि. द्वारा डाक्ट्ररेट की उपाधि से अलंकृत किया।
मैंने पंडित जी से अध्ययन कर जो उनसे पाया है उससे मैं कभी भी उऋण नहीं हो सकता उनके चरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पण करता हूँ। वे इस देह से हमारे बीच नहीं है लेकिन हमारे मन में सदैव जीवंत है।
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