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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ गुरुवर के पावन चरणों में... प्रणाम भारत माता के उपवन में, पुष्पों की है कमी नहीं। इतने सुन्दर इतने सुरभित, सुमन धरा पर कहीं नहीं। जिनका नाम याद करते ही, मन गौरव से भर जाता। जिनकी गुण गरिमा गाने से, सिर चरणों में झुक जाता ॥1॥ ऐसे ही इक महिमा मंडित, पुत्र शारदा महारतन। दयाचंद जी विद्वत् वर को हम सादर करते सुमरन ॥ उनके अनुपम गुणमणियों की, माला एक बनाते है। उसको उनके श्रीचरणों में, श्रद्धा सहित चढ़ाते है ।।2।। एकादश अगस्त, सन् पन्द्रह हुआ शाहपुर सूर्योदय । भगवान भायजी मथुराबाई, हर्षे जननी जनक उभय ।। खेलेकूदे बड़े हो गये, पढ़े लिखे विद्वान बने । किं बहुना दिनकर से चमके, देश धर्म की शान बने ॥3॥ हुए विवाहित सन् चालीस में, पाँच पुत्रियों दिया जनम् । छोटी पुत्री ब्रह्मचारिणी, विदुषी हैं शुभनाम किरण ॥ पुरातन पीढ़ी, आर्षमार्गी, विद्वन्माला रतन महान । जैनागम के गहन ध्येता, चतुर्मुखी प्रतिभा विद्वान ।।4।। पीएच.डी सिद्धांत शास्त्री, साहित्याचार्य शैक्षिक ज्ञान । धर्म दिवाकर साहित्यभूषण विद्वत्रत्न प्राप्त सम्मान ॥ हुए पुरस्कृत भीतर बाहर, सम्मान राशि सह बारम्बार । रजतपत्र द्वारा अभिनन्दित, एकादश इक्यावन हजार ॥5॥ "गणेश दिगम्बर जैन" संस्कृत विद्यालय सागर विख्यात । पचपन वर्ष किया अध्यापन, तन मन पूर्ण समर्पण साथ ॥ भारत के कोने कोने में, जाकर प्रवचन किये विधान। धन पीयूष पिला संस्था को, किया आप सामर्थ्य प्रदान ॥6॥ लिखे बहुत से ग्रन्थ आपने, सम्पादित भी हुए अनेक । नामोल्लेख असंभव सबका, नामांकन संभव कुछ एक ॥ "जैन पूजा काव्य: एक चिंतन", “संक्षिप्त परिचय वर्णी संत "। "धर्म राजनीति समन्वय", "मुन्नालाल स्मृति ग्रंथ" ||7॥ नियम और अनुशासन पालन, रहे आपके जीवन अंग।
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