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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ देव अर्चना खङ्गासन रह, शुद्ध वस्त्र अभिषेकी संग ॥ की प्रभावना जैन धर्म की, सर्व धर्म सम्मेलन जा। रहा कुशल मंच संचालन, विद्वत् गोष्ठी धर्म सभा ।।४।। सम्यक दृष्टि भद्र परिणामी, विद्वत् वर थे निस्संदेह । माह फरवरी द्वादस, रविदिन, दो हजार छ: त्यागी देह ।। नमस्कार मंत्र का चिंतन, बाहुबली अभिषेक श्रवण । करते करते पंडित जैसा, हुआ शांतिमय समाधिमरण ॥9॥ महामनीषी, विद्वत् वर को, याद करेंगे सदा सभी। आप रहे मेरे विद्या गुरु, नहीं भूल सकता हूँ कभी। बीना में वीणा देवी की, महा अर्चना सीखा काम । गुरुवर के पावन चरणों में, सादर बारम्बार प्रणाम ।।
पं. लालचंद जैन “राकेश" के.एस.पी. सरस्ववती नगर जवाहर चौक, भोपाल
दिवंगत सरस्वती पुत्र को समर्पित विनयांजलि
“वृष के कर्मवीर" अनगिनत नक्षत्र खिले जग में, उद्योत कहाँ दे पाते हैं। जब चंद्र पूर्णता को पाते, सुषमा सुस्मित हो देते हैं ।
मानव अनगिनत पैदा होते, जीवन जीते मर जाते हैं।
मर कर भी अमर नाम जिनके, नरपुंगव वे कम होते हैं। बुंदेलखण्ड की पावन भू, इक वगिया पुलकित फूली थी। मथुराबाई, भगवानदास, दम्पत्ति की इच्छा पूरी थी॥
खिले पाँच पुष्प सुवर्ण गंध, माणिक श्रुत कहलाये थे।
श्री दयाचंद्र मणि मुंदरी से, पाँचों के मध्य सुहाये थे। श्रीधर्म और श्री अमरचंद्र, स्वमात - पिता सुखसाये थे। पाँचों पाण्डव से प्रीतिपगे, वे श्रेष्ठ सहोदर भाये थे।
श्री दयाचंद शिक्षित दीक्षित, मेघावी गुणी मनीषी थे।
साहित्याचार्य, सिद्धांतशास्त्री, शैक्षिक व्यवसाय सुनीति थे। कर्मठ स्वाध्यायी, लोकप्रिय, वे विद्वत् रत्न कहाये थे। धर्मोपदेश में पारंगत, वन समाज रत्न सुहाये थे।
दशलक्षण पर्व प्रवचन देते, चालीस वर्ष जग छाये थे।
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