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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
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जहाँ जाते मंत्र मुग्ध करते, जिन दर्शन धर्म दिवाने थे ॥ नित पूजन करते खड़े खड़े, जीवन भर नियम निभाये थे । श्रावक कर्तव्य पूर्ण करके, पुष्पित सानंद सुहाये थे |
वृष की सेवा जीवन अर्पित, लेखन वक्तव्य सुहाये थे । सम्पादन लेखन कर्म किए, आलेख शोध सम्पूरे थे | अनगिनत वार सम्मानित हो, श्रुत संवर्धन गुणनिधि पाये थे । कृतियाँ कितनी ही आज सुलभ, साहित्याचार्य सुहाये थे |
भाईचारा वात्सल्य प्रेम, जन मन के हिये सितारे थे । कर्त्तृत्वमयी कृति श्रेष्ठ सृजन, भव्यात्मा रहे दुलारे थे ॥ शैक्षिक योग्यता प्रखर मति, साहित्य भूषण कहलाये थे । सफल प्राचार्य, विद्वत्रत्नों में, धर्मदिवाकर भूषित थे |
अंतिम दिन तक वृष चित्त रमा, कृत पंडित मरण मनीषी थे दीपक बन ज्ञान प्रकाश दिया, अनगिनत दीप की ज्योति थे । कर्तव्य प्रणम्य विमल मन से, कृतित्व योग स्वर्णाक्षर थे । विनयांजलि वृष के कर्मवीर, प्रेरक सत्साहस अक्षय थे |
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
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प्रो. डॉ. विमला जैन विमल सह सम्पादिका महिलादर्ष, फिरोजाबाद (उ.प्र.)
पं. दयाचंद साहित्याचार्य के प्रति शुभांजलि मृदुभाषी, शीतल हृदय, सुन्दर, सरल, उदार । ऐसे थे पं. दयाचंद जी, जो सब जन से पाये प्यार ||
लेखन सम्पादन कर, किया जिनवाणी का प्रचार प्रसार ।
वर्णी जी का आशीष पा, किया आजीवन गुरुकुल का काम ॥
सागर विश्वविद्यालय से सम्मानित हुए, पाई पी. एच. डी. जैन पूजा काव्य पर । " विद्वत् रत्न" साहित्य भूषण से अलंकित हुए, पाये अनेक मान सम्मान ॥ हे जिनवाणी के अनन्य भक्त, आपने किये प्रवचन आगमानुसार । आपके साहित्य सृजन से, भर गया जिनवाणी भण्डार ॥ आपको श्रद्धा सुमन समर्पण है, नमन है बारम्बार ।
नाम आपका अजर अमर रहे, यही मंगल भावना भाते दिनरात ||
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इंजी. सुखदेव जैन
नेहा नगर मकरोनिया, सागर
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