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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आत्मीय उद्गार
हेमचंद जैन (समाज सेवी)
सागर (म.प्र.) पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी जी द्वारा स्थापित श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय शिक्षा जगत में विशेषकर जैन दर्शन और संस्कृत भाषा के लिए सम्पूर्ण देश में अपना विशिष्ठ स्थान रखता है इस महाविद्यालय के विद्यार्थी आज देश में प्रवचनों और जैन धर्म की प्रभावना के लिए देशभर में जैन दर्शन के जैन धर्म के राजदूत जैसे है।
इस महाविद्यालय में स्वयं दयाचंद जी साहित्याचार्य जैसे प्राचार्य ने अपने जीवन में पठन पाठन और धर्माचरण को अपना कर समाज में विशिष्ठ स्थान प्राप्त किया, तथा देश भर में कुशल प्रवचनकार और जैन दर्शन के प्रतिष्ठित विद्वान के रूप में ख्याति प्राप्त कर महाविद्यालय का मान बढ़ाया । आज महाविद्यालय उनके कृतित्व और जीवन जीने की अद्भुत शैली के सम्मानार्थ एक स्मृति ग्रंथ प्रकाशित करने जा रहा है निश्चित ही यह ग्रंथ नवयुवकों एवं धर्म में आस्था रखने वालों को प्रेरणा देता रहेगा। दिवंगत आत्मा को सद्गति मिले इसी भावना के साथ सम्पादक मंडल को भी बधाई देता हूँ।
शुभकामनाओं सहित
सरल स्वभावी पंडित जी
श्रीमती शकुनलता जैन
बैंक ऑफ इन्दौर गुजराती बाजार, सागर पूज्य स्व. डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य पूर्व प्राचार्य श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर आर्षमार्गी प्राचीन विद्वानों की पीढ़ी के एक आदर्श सरस्वती पुत्र थे उनकी सम्पूर्ण भारत में की गई जिनवाणी सेवा को भुलाया नहीं जा सकता है। वे देव शास्त्र गुरु के परम भक्त थे। लगभग 91 वर्ष की आयु में भी मंदिर जी में खड़े होकर भक्तिभाव से पूजा करते थे। विनम्रता उनके व्यक्तित्व का विशेष गुण था वे सफल प्राध्यापक, समन्वयवादी अनुशासन के पक्षधर प्राचार्य रहे। पू. वर्णीजी महाराज तथा पू. संतशिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के जीवन भर परम भक्त रहे । राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत मनीषी थे। वे दिगम्बर आचार्यो तथा पू. सर्वोच्च गणिनि प्रमुख आर्यिका ज्ञानमती माता जी तथा पू. गणिनि सुपार्श्वमति आदि माताओं को आदर्श मानते थे। उनका मरण पंडित मरण तुल्य हुआ। स्मृति ग्रंथ प्रकाशन में अपनी विनम्र विनयांजलि सेवार्पित करती हूँ।
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