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भूमिका । सोर्थज्ञः स विचारज्ञाश्चिकित्साकुशलश्च सः।
रोगास्तेषां चिकित्साश्च स किमर्थं न बुध्यते ॥ अर्थात्-यह बारह हजार श्लोकात्मक संहिता जिसके हृदयमें स्थित है वह अर्थका जाननेवाला, संपूर्ण वैद्यकीय विषयोंको समझनेवाला, विचारवान् और चिकित्सा कुशल होताहै ऐसे कौन रोग और उनकी चिकित्सायें हैं जिनको इस संहिताका जाननेवाला वैद्य न समझताहो । परन्तु शोक है कि आज इस चरकसंहिताके पढने पढानेवाले और आयुर्वेदीय ज्ञान समझने वथा समझानेवालोंका प्रायः अभाव ही सा होगयाहै जिससे इस समय आयुर्वेदकी अत्यंत अवनत दशा है।
यद्यपि आजकल सुननेमें आताहै कि आयुर्वेदकी उन्नति होने लगीहै।कहीं आयवैदविद्यापीठ, कहीं वैद्य महासभा, कहीं नये ढंगकी शिक्षा, कहीं आरोग्यभवन और कहीं आयुर्वेदीय महौषधालय खोलेगयेहैं । कोई २ महाशय तो खास धन्वः न्तरिसे ही गुप्तप्रयोग सीखआहे, किसी किसीने वनस्पतियों का अद्वितीय उद्धार ही करमारा है परन्तु क्या इन सब बातोंसे आयुर्वेदकी उन्नति होनेका कोई ढंग दिखाई पडताहै ? विचारसे देखिये तो उन्नतिवाजोंने इस जीर्ण शीर्ण आयुर्वेदको — सर्वथा नष्ट करनेकाही सूत्रपात करदियाहै । अव सम्भव है कि आयुर्वेद जाननेवा
लोको भी किसी आईनके अन्दर बन्द होना पडेगा । यह सब अदूरदर्शी उन्नतिबाजोंक झूठे चटकीले विज्ञापनोंका फल नहीं तो और क्या है? अब आप विचारसे देखिये कि औषधालयों और विज्ञापनों द्वारा आयुर्वेदकी कितनी उन्नति हुई। यद्यपि औषधालय भी आयुर्वेदके अंग हैं,आयुर्वेद विद्यापीठवें भी बहुत कुछ लाभ पहुंच सकताहै और वैद्य महासभायें भी आयर्वेदको उन्नत अवस्थामें ला सकती हैं परन्तु कव ? जवकि आयुर्वेद के मेमसे माफर्षित हों, जवं आयुर्वेदके पुनरुद्धारार्थ स्वार्थको त्याग दें, जब आयुर्वेदके महत्वको जान, आयुर्वेदके गौरवको समझ,भूतः पूर्व आयुर्वेदकी उन्नत अवस्थाको यादकर और पूर्वज महर्षियोंकी परोपकारितापर ध्यान दे, प्रेमभरे हृदयसे ऐहलौकिक और पारलौकिक उन्नत्तिका आधार आयुवदको ही मानने लगें।
इसमें कोई संदेह नहीं कि अव आयुर्वेदकी उन्नति के लिये ऋषियोंके समान हिमालय और देवलोकमें जानेकी आवश्यकता नहीं । क्योंकि यह मायुर्वेद भण्डार इस जीर्ण शीर्ण दशामें भी किसी अंगमें अपूर्ण नहीं है । निरूहण,अनुवासन, (गुद. द्वारा पिचकारियोंका करना) आदिवस्तिकर्म, उत्तरवस्ति (मूत्रमार्गसे कैथीटर
आदि प्रवेशकर मूत्राशय और उसके मार्गको दोषरहित करना)शिरावस्ति (शरी. रकी नसों में सूक्ष्म पिचकारी द्वारा औषध पहुंचाना) भर्शके मस्से काटना, पथरी