Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रस्तावना
सत्ताईसवें अध्याय — में कुल 13 श्लोक हैं। इस अध्याय में वस्त्र, आसन, पादुका आदि के छिन्न होने का फलादेश कहा गया है। यह छिन्न निमित्त का विषय है। नवीन वस्त्र धारण करने में नक्षत्रों का फलादेश भी बताया गया है। शुभ मुहूर्त में नवीन वस्त्र धारण करने से उपभोक्ता का कल्याण होता है। मुहूर्त का उपयोग तो सभी कार्यों में करना चाहिए।
परिशिष्ट में दिये गये 30 वें अध्याय में औरष्टो का वर्णन किया गया है। मृत्यु के पूर्व प्रकट होने वाले अरिष्टों का कथन विस्तार पूर्वक किया है। पिण्डस्थ, पदस्थ और रूपस्थ तीनों प्रकार के अरिष्टों का कथन इस अध्याय में किया है। शरीर में जितने प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं, उन्हें पिण्डस्थ अरिष्ट कहा गया है। यदि कोई अशुभ लक्षण के रूप में चन्द्रमा, सूर्य, दीपक या अन्य किसी वस्तु को देखता है तो ये सब अरिष्ट मुनियों के द्वारा पदस्थ बाह्य वस्तुओं से सम्बन्धित कहलाते हैं। आकाशीय दिव्य पदार्थों का शुभाशुभ रूप में दर्शन करना, कुत्ते, बिल्ली, कौआ आदि प्राणियों की इष्टानिष्ट सूचक आवाज का सुनना या उनकी अन्य किसी प्रकार की चेष्टाओं को देखना पदस्थारिष्ट कहा गया है। पदस्थ रिष्ट में मृत्यु की सूचना दो-तीन वर्ष पूर्व भी मिल जाती है। जहाँ रूप दिखलाया जाय वहाँ रूपस्थ अरिष्ट कहा जाता है। यह रूपस्थ अरिष्ट छायापुरुष, स्वप्नदर्शन, प्रत्यक्ष, अनुमानजन्य और प्रश्न के द्वारा अवगत किया जाता है। छायादर्शन द्वारा आयु का ज्ञान करना चाहिए। उक्त तीनों प्रकार के अरिष्ट व्यक्ति की आय की सूचना देते हैं।
गणधराचार्य कुंथु सागर