Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| प्रस्तावमा
प्रस्तावना
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मंगल दशवें ग्यारहवें और बारहवें नक्षत्र से लौटता है तो शोषमुख वक्र कहलाता है। इस वक्र में आकाश से जल की वर्षा होती है। जब मंगल राशि परिवर्तन करता है, उस समय वर्षा होती है। यदि मगंल चौदहवें अथवा तेरहवें नक्षत्र से लौट आवे तो यह उसका ब्याल चक्र होता है, इसका फलादेश अच्छा नहीं होता। जब मंगल पन्द्रहवें या सोलहवें नक्षत्र से लौटता है; तब लोहित बक कहलाता है। इसका फलादेश जल का अभाव होता है। जब मंगल सत्रहवं या अ6 नक्षत्र से लौटता है, तब लोहमुद्गर कहलाता है। इस वक्र का फलादेश भी राष्ट्र और समाज को अहितकर होता है। इसी प्रकार मंगल के नक्षत्र का भी वर्णन किया गया है।
बीसवें अध्याय में 63 श्लोक हैं। इस अध्याय में राहु के गमन, रंग आदि का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में राहु की दिशा, वर्णन, गमन और नक्षत्रों के संयोग आदि का फलादेश वर्णित है। चन्द्रग्रहण तथा ग्रहण की दिशा, नक्षत्र आदि का फल भी बतलाया गया है। नक्षत्रों के अनुसार ग्रहणों का फलादेश भी इस अध्याय में आया है।
इक्कीसवें अध्याय-58 श्लोक हैं। इसमें केतु के नाना भेद, प्रभेद, उनके स्वरूप, फल आदि का विस्तार सहित वर्णन किया गया है। बताया गया है कि 120 वर्ष में पाप के उदय से विषम केतु उत्पन्न होता है, इस केतु का फल संसार को उथल-पुथल करनेवाला होता है। जब विषम केतु का उदय होता है, तब विश्व में युद्ध, रक्तपात, महामारी आदि उपद्रव अवश्य होते हैं। केतु के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन भी इस अध्याय में फल सहित वर्णन किया है। अश्विनी आदि नक्षत्रों में उत्पन्न होने पर केतु का फल विभिन्न प्रकार का होता है। क्रूर नक्षत्रों में उत्पन्न होने पर केतु भय और पीड़ा का सूचक होता है और सौम्य नक्षत्रों में केतु के उदय होने से राष्ट्र में शान्ति और सुख रहता है। देश में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
बाईसवें अध्याय—में 21 श्लोक हैं। इस अध्याय में सूर्य की विशेष अवस्थाओं का फलादेश वर्णित है। सूर्य के प्रवास, उदय और चार का फलादेश बतलाया गया है। लालवर्ण का सूर्य अस्त्र प्रकोप करने वाला, पीत और लोहित वर्ण का सूर्य व्याधि-मृत्यु देने वाला और धूम्रवर्ण का सूर्य भुखमरी तथा अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करने वाला होता है। सूर्य की उदयकालीन आकृति के अनुसार भारत के विभिन्न देशों के सुभिक्ष और दुर्भिक्ष का वर्णन