Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
में कहा गया है।
सत्रहवें अध्याय में गुरु के वर्ण, गति, आधार, मार्गी, अन्त, उदय, वक्र आदि का फलादेश वर्णित है। इस अध्याय में 46 श्लोक हैं। बृहस्पति का कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा और पूर्वाफाल्गुनी इन नौ नक्षत्रों में उत्तर मार्ग; उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल और पूर्वाषाढ़ा इन नौ नक्षत्रों में मध्यम मार्ग एवं उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी
और भरणी इन नौ नक्षत्रों में दक्षिण मार्ग होता है। इन मार्गों का फलादेश इस अध्याय में विस्तार पूर्वक निरूपित है। संवत्सर, परिवस्तसर, इरावत्सर, अनुवत्सर और इद्वत्सर इन पाँचों संवत्सरों के नक्षत्रों का वर्णन फलादेश के साथ किया गया है। गुरु की विभिन्न दशाओं का फलादेश भी बतलाया गया है।
' अठारहवें अध्याय में बुध के अस्त, उदय, वर्ण, ग्रहयोग आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इस अध्याय में 37 श्लोक हैं। बुध की सौम्या, विभिश्रा, संक्षिप्ता, तीव्रा, घोरा, दुर्गा और माया इन सात प्रकार की गतियों का वर्णन किया गया है। बुध की सौम्या, विमिश्रा और संक्षिप्ता गतियाँ हितकारी हैं। शेष सभी गतियाँ पाप गतियाँ हैं। यदि बुध समान रूप से गमन करता हुआ शकटवाहक के द्वारा स्वाभाविक गति से नक्षत्र का लाभ करे तो यह बुध का नियतचार कहलाता है, इसके विपरीत गमन करने से भय होता है। बुध की चारों दिशाओं की वीथियों का भी वर्णन किया गया है। विभिन्न ग्रहों के साथ बुध का फलादेश बताया गया है।
उन्नीसवें अध्याय में 39 श्लोक हैं। इसमें मंगल के चार, प्रवास, वर्ण, दीप्ति, काष्ठ, गति, फल, वक्र और अनुवक्र का विवेचन किया गया है। मंगल का चार बीस महीने, वक्र
आठ महीने और प्रवास चार महीने का होता है। वक्र, कठोर, श्याम, ज्वलित, धूमवान, विवर्ण, क्रुद्ध और बायीं ओर गमन करने वाला मंगल सदा अशुभ होता है। मंगल के पाँच प्रकार के वक्र बताये गये हैं—उष्ण, शोषमुख, ब्याल, लोहित और लोहमुद्गर। ये पाँच प्रधान वक्र हैं। मंगल का उदय सातवें, आठवें या नवें नक्षत्र पर हुआ हो और वह लौटकर गमन करने लगे तो उसे उष्ण वक्र कहते हैं। इस उष्णवक्र में मंगल के रहने से वर्षा अच्छी होती है, विष कीट और अमि की वृद्धि होती है। जनता को साधारणत: कष्ट होता है। जब