Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
दिखाई देने वाले और शरीर से उत्पन्न चेष्टाओं का विचार करना होता है। सर्वप्रथम पुरोहित तथा हवन क्रिया द्वारा शकुनों का विचार करना चाहिए। कौआ, मूषक और शूकर आदि पीछे की और आते हुए दिखाई पड़े अथवा बाई ओर चिड़िया उड़ती हुई दिखलाई पड़े तो यात्रा में कष्ट की सूचना समझनी चाहिए। ब्राह्मण, घोड़ा, हाथी, फल, अन्न, दूध, दही, आम, सरसों, कमल, वस्त्र, वेश्या, बाजा, मोर, पपैया, नेवला, बैंधा हुआ पशु, ऊख, जलपूर्ण कलश, बैल, कन्या, रत्न, मछली, मन्दिर एवं पुत्रवती नारी का दर्शन यात्रारम्भ में हो तो यात्रा सफल होती है। सीसा, काजल, धुंघुला वस्त्र, धोने के लिए वस्त्र ले जाते हुए धोबी, घृत, मछली, सिंहासन, मुर्गा, ध्वजा, शहद, मेवा, धनुष, गोरोचन, भरद्वाजपक्षी, पालकी, वेदध्वनि, मांगलिक गायन ये पदार्थ सम्मुख आवें तथा बिना जल-खाली घड़ा लिये कोई व्यक्ति पीछे की ओर जाता दिखाई पड़े तो यह शकुन अत्युत्तम है। बाँझ स्त्री, चमड़ा, धान का भूसा, पुआल, सूखी लकड़ी, अंगार, हिजड़ा, विष्ठा के लिए पुरुष या स्त्री, तैल, पागल व्यक्ति, जटावाला सन्यासी व्यक्ति, तृण, सन्यासी, तेल मालिश किये बिना स्नान के व्यक्ति, नाक या कान कटा व्यक्ति, रुधिर, रजस्वला स्त्री, गिरगिट, बिल्ली का लड़ना या रास्ता काटकर निकल जाना, कीचड़, कोयला, राख, दुभंग व्यक्ति आदि शकुन यात्रा के आरम्भ में अशुभ समझे जाते हैं। इन शकुनों से यात्रा में नाना प्रकार के कष्ट होते हैं और कार्य भी सफल नहीं होता है। यात्रा के समय में दधि, मछली और जलपूर्ण कलश आना अत्यन्त शुभ माना गया है। इस अध्याय में यात्रा के विभिन्न शकुनों का विस्तार पूर्वक विचार किया गया है। यात्रा करने के पूर्व शुभ शकुन और मुहूर्त का विचार अवश्य करना चाहिए। शुभ समय का प्रभाव यात्रा पर अवश्य पड़ता है। अतः दिशा शूल का ध्यान कर शुभ समय में यात्रा करनी चाहिए।
चौदहवें अध्याय में उत्पातों का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में 182 श्लोक हैं। आरम्भ में बताया गया है कि प्रत्येक जनपद को शुभाशुभ की सूचना उत्पादों से मिलती है। प्रकृति के विषय कार्य होने को उत्पात कहते हैं। यदि शीत ऋतु में गर्मी पड़े और ग्रीष्म ऋतु में कड़ाके की सर्दी पड़े तो उक्त घटना के नौ या दश महीने के उपरान्त महान् भय होता है पशु, पक्षी और मनुष्यों का अपने स्वभाव विपरीत आचरण दिखलाई पड़े अर्थात् पशुओं के पक्षी या मानव सन्तान हो स्त्रियों के पशु-पक्षी सन्तान हो तो भय और विपत्ति की सूचना समझनी चाहिए। देवप्रतिमाओं द्वारा जिन उत्पातों की सूचना मिलती है, वे दिव्य