Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
नायाधम्मकहाओ
प्रथम अध्ययन : सूत्र ३३
ण्हायाओ कयबलिकम्माओ कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ताओ किं ते? वरपायपत्तनेउर-मणिमेहल-हार-रइय-ओविय-कडगखुड्डय-विचित्तवरवलयर्थभियभुयाओ कुंडलउज्जोवियाणणाओ रयणभूसियंगीओ, नासा-नीसासवाय-वोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिससंजुत्तं हयलालापेलवाइरेयं धवलकणय-खचियंतकम्म आगासफलिह-सरिसप्पभं अंसुयं पवर परिहियाओ, दुगूलसुकुमालउत्तरिज्जाओ सव्वोउय-सुरभिकुसुम-पवरमल्लसोभियसिराओ कालागरुधूवधूवियाओ सिरी-समाणवेसाओ, सेयणय-गंधहत्थिरयणं दुरूढाओ समाणीओ, सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चंदप्पभवइरवेरुलिय-विमलदंड-संखकुंददगरयअमयमहियफेणपुंजसन्निगास-चउचामरवालवीजियंगीओ सेणिएणं रण्णा सद्धिं हत्थिखंधवरगएणं पिट्ठओ-पिट्ठओ समणुगच्छमाणीओ चाउरंगिणीए सेणाए--महया हयाणीएणं गयाणीएणं रहाणीएणं पायत्ताणीएणं--सव्विड्डीए सव्वज्जुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभुईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फ-गंधमल्लालंकारेण सव्वतुडिय-सद्दसण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणवपडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं रायगिह नयरं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चरचउम्मुह-महापहपहेसु आसित्तसित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-सरस-सुरभि-मुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरुपवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डझंत-सुरभि-मघमघेत-गंधुद्धयुयाभिरामं सुगंधवर (गंध?) गंधियं गंधवट्टिभूयं अवलोएमाणीओ नागरजणेणं अभिनंदिज्ज-माणीओ गुच्छ-लया-रुक्ख-गुम्मवल्लि-गुच्छोच्छाइयं सुरम्मं वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वओ समंता आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिंति। तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव दोहलं विणिज्जामि।।
नई सौरभ वाले (कुकुरमुत्ता), कुटज, कन्दल और कदम्ब घ्राण को तृप्ति देने वाली गंध बिखेर रहे हों--ऐसे उपवनों में।
जो कोकिल के पंचम स्वर के कूजन से संकुल हो, जहां लाल वीरवधूटियां घूम-फिर रही हों, चातक पक्षी करुण विलाप कर रहे हों, जो अवनत तृणों से मंडित हो, जहां मेंढ़क टर्रटर्र कर रहे हो। जहां एकत्रित हुए दृप्त मधुकर और मधुकरियों के समूह परस्पर आश्लिष्ट हो रहे हो, मकरन्द के रसिक मत्त षट्पदों के मधुर गुंजन से जिनके प्रदेश गुंजित हो रहे हों--ऐसे उपवनों में।
अपनी घटाओं से चन्द्र, सूर्य और ग्रहगण की प्रभा को श्यामल तथा नक्षत्र और तारकों की प्रभा को तिरोहित करने वाले इन्द्र धनुष रूप चिह्न पट्ट युक्त अम्बर वाले, उड़ती हुई बलाका-पंक्ति से सुशोभित मेघ-पटल वाले और बतख, चकवा एवं कलहंस के मनों में उत्सुकता जगाने वाले प्रावृट काल में जो स्नान, बलिकर्म और कौतुक-मंगलरूप प्रायश्चित्त कर चुकी हों। और क्या? वे अपने सुन्दर पैरों में नूपुर पहन, कटिप्रदेश पर मणिमेखला, गले में हार, भुजाओं में सुन्दर परिकर्मित कड़े, अंगुलियों में मुद्रिकाएं और विचित्र प्रवर कंगण पहने हुए हों, जिन से उनकी भुजाएं स्तम्भित-सी हो गई हों, कुण्डलों की प्रभा से जिनका मुख दमक रहा हो, जिनका शरीर रत्नों से विभूषित हो, नासिका के नि:श्वास की वायु से उड़ने वाले, तथा आंखों को आकर्षित करने वाले वर्ण और स्पर्श से युक्त, घोड़े की लार से भी अधिक कोमल, किनार पर धवल-कनक की कढ़ाई वाले और आकाश-स्फटिक के समान प्रभा वाले प्रवर अंशुक पहने हुए हों। जो सुकुमाल दुपट्टे का उत्तरीय धारण किये हुए हों, जिनके सिर सब ऋतुओं में सुरभित रहने वाले (सदा बहार) फूलों की प्रवर मालाओं से शोभित हों, जिनके (केश, वस्त्र व अंगों पर) काली अगर की धूप खेई गई हों, जो लक्ष्मी के समान नेपथ्य वाली हों, जो सेचनक नामक गन्धहस्ती-रत्न पर आरूढ़ हो, कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्रधारण किये हुए हों और चन्द्रकान्त, वज्र एवं वैडूर्य मणियों के विमल दण्ड वाले तथा शंख, कुन्द पुष्प, जलकण, अमृत और मथित फेन-पुञ्ज के समान श्वेत चार चामर रूप बालविनियों से जिनका शरीर वीजित हो, प्रवर हस्ति-स्कन्ध पर आरूढ राजा श्रेणिक पीछे-पीछे चलता हुआ जिनका अनुगमन कर रहा हो, जो महान् अश्व सेना, गज सेना, रथ सेना और पैदल-सेना-इस प्रकार की चतुरंगिणी सेना, सम्पूर्ण ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय" (जनसमूह) आदर, विभूति, विभूषा, संभ्रम, सब प्रकार के पुष्प, गन्धचूर्ण, मालाएं और अलंकार, सब प्रकार के वाद्यों के सम्मिलित स्वर से उठे निनाद, महान ऋद्धि, महान द्युति, महान बल, महान समुदय (जनसमूह), एक साथ बजाए जाने वाले महान प्रवर वादिन--शंख, प्रणव, ढोल, भेरि, झालर, खरमुखी, हुडुक्क, मुरज, मृदंग और दुन्दुभि के निर्घोष से निनादित स्वरों के साथ, दोराहों, तिराहों, चौराहों, चोकों, चतुर्मुखों (चारों ओर दरवाजे वाले देवकुलों) राजमार्गों और मार्गों में सामान्य और विशेष जल का
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org