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आत्म-कथा मुनिराजों के दर्शन करूंगा, बड़ा आनन्द आयगा । जब भी कभी मन्दिर में पुराण पढ़ने बैठता तभी. इस प्रकार के जाग्रत स्वप्नों से मेरा हृदय भर जाता।
पुराणों के स्वाध्यायने जैन मुनियों के विषय में अटूट श्रद्धा पैदा करदी थी और उनके कठोर.और निर्दोष जीवन की, उनकी अपरिमित शक्तियों की छाप हृदय पर लगा दी थी। इस का परिणाम यह हुआ कि पीछे जब समाज-सेवा के क्षेत्र में आया तत्र मुनिवेषियों की त्रुटियों और चालाकियों को सह न सका इसलिये उनका प्रचंड समालोचक बन गया। जैन-जगत् के सम्पादक बनने पर मुनिवेषियों के विरोध में जो प्रचंड आन्दोलन किया था उसके कारणों में वाल्यावस्था के ये संस्कार मुख्य थे।
गरीबी का अनुभव .. मेरे पिताजी काफ़ी गरीब थे । अगर बुआने हम लोगों को सहारा न दिया होता तो ज़िन्दे तो रहते पर गरीबी के कष्ट खूब बढ़ जाते । शाहपुर में जब माताजी का देहान्त हुआ उस समय पिताजी के पास क्या पूँजी थी और दिन-पानी ( मृत्युभोज ) का क्या कैसा हुआ मुझे नहीं मालूम, पर जब पिताजी मुझे और मेरी छोटी बहिन को लेकर दमोह आये तब उनके कथनानुसार उनके पास.एक रुपया और कुछ पैसे थे। मेरी बुआ का घर बड़ा था और उन्हीं के चौके में हम लोग भोजन करते थे इसलिये रहने का., खानेपीने का - कोई: कष्ट. न हुआ । इस प्रकार. अपनी बुआ के असीम बात्सल्य से मैं माताजी को भूल गया ।