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विजातीय विवाह - आंदोलन
(२०) विजातीय विवाह - आंदोलन
एकदिन अकस्मात् दिल्ली के लाला जौहरीमलजी सरीफ का एक पत्र मिला जिसमें लिखा था कि " मैंने ब्र. शीतलप्रसादजी से विजातीय विवाह पर ट्रेक्ट लिखने को कहा था उनने आपका नाम सुझाया है इसलिये आप कृपाकर एक ट्रेक्ट लिख दीजिये ।'
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आन्दोलक बनने के लिये कोई नया आन्दोलन खड़ा करने की रुचि मुझमें नहीं रहीं । मैंने आन्दोलन खड़ा किया है तो या तो उसमें किसी की प्रेरणा निमित्त बनी है या किसी का विरोध । प्रेरणा से मैं गौरव अनुभव करता और कुछ करने लगता और विरोध से मेरा अभिमान जग पड़ता इसलिये कुछ करने लगता । अगर ये दोनों निमित्त न मिलते तो नहीं मालूम मेरे ऊपर लादी हुई पंडिताई का बोझ किस काम आता ?
खैर, लाला जौहरीमलजी की मैंने भेज दिया । पर मेरे अक्षर खराब प्रकाशित ही नहीं हुआ और मुझे तो लिखकर छुट्टी लेली ।
प्रेरणा से एक ट्रेक्ट लिखकर होने से वह कई महिने तक कोई पर्वाह नहीं थी । ट्रेक्ट
कुछ महीने बाद जब में
पर्युपण में सहारनपुर शास्त्र पढ़ने के लिये गया और दिल्ली ठहरा तत्र जौहरीमलजी ने वह ट्रेक्ट प्रेस में देदिया । छपने के बाद जैनमित्र में प्रकाशनार्थ गया, वहां वह पूरा का पूरा ट्रेक्ट छाप दिया गया । बस दि. जैन समाज में मानों तूफ़ान आगया ।