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आत्मकथा
२ - ऐसे लोग भी जब भीतर की आवाज आदि की दुहाई देकर अपनी बात कहते हैं और विचार का पूरा अवसर नहीं देते तत्र उनसे पहाड़ सरीखी भूलें हो जाया करती हैं वे अपनी भूलों को स्वीकार करके दुनिया पर अपनी नम्रता तो लाद सकते हैं पर भूलों के दुष्परिणाम को नहीं रोक सकते ।
३ - जहाँ अधिक तर्क वितर्क का अवसर न हो, तुरंत ही कुछ न कुछ कर्तव्य करना हो, जैसे युद्ध के मोर्चे पर, यहाँ सिर्फ अनुभव आदि से काम चलजाता है गुप्त रहस्य में भी यही बात है ।
४ - जिन बातों पर अनेक पहलुओं से गम्भीरतापूर्वक विचार किया जा चुका है उन्हीं को जब कोई फिर फिर लाता है उस में कोई नई बात नहीं होती तव उपेक्षा करना पड़ती है । -
मतलब यह कि विरोधी और मध्यस्थों को बोलने के लिये कम से कम अवसर देना, कुछ समय बाद विचारों को कार्यपरिणत करने की कोशिश करना अन्दोलन के विषय में मेरी नीति थी ।
आन्दोलन करने के जितने साधन मेरे पास थे उन सबका उपयोग मैं करता था । चर्चा व्याख्यान आदि की अपेक्षा लेखन ही सबसे बड़ा साधन था । पर लेखन के ढंग नाना थे । कविता, कहानियाँ, ऐतिहासिक अर्ध ऐतिहासिक घटनाओं का अपने रंग से चित्रण, संवाद, टिप्पणियाँ लेख आदि जितने ढंग से लिखकर मौलिकता लाई जा सकती थी मैं लाने की कोशिश करता था ।
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बीच में मैंने ' धर्मरहस्यम् ' नामका एक संस्कृत पद्यमय ग्रंथ 'लिखना शुरु किया जिसमें गौतम और श्रेणिक के संवाद के रूप