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. आत्म-कथा श्रीमानों पर अपना दबाव डालकर पत्र बन्द कराना. चाहा, मेरे मित्रों सहयोगियों पर भी दबाव डाला, अन्त में प्रकाशक जी को फुसलाने की चेष्टा की कि वे मेरे लेख न छापें । जब किसी भी तरह सफलता न मिली, तब मेरी निन्दा करके या कुछ गालियाँ देकर सन्तोष माना। सुधारक कहलानेवालों का यह रुख देखकर मैं चकित होगया । मैं आशा करता था कि इनसे लेखमाला का समर्थन होगा : पर वे उग्र से उग्र विरोधी निकले।
इस निराशा को जीतनेका एक बड़ा भारी सहारा यह था कि मैं भावुक था, जो कि अब भी हूं । मैं सोचता था कि जीते जी दुनिया ने किसी को अच्छी तरह कब माना है ? ईसा आदि बड़े बड़े महापुरुषों ने भी निन्दा ही पाई थी पर आज वे अमर हैं । मैं उनका शतांश भी बन सका तो मेरा जीवन सफल है । बस, सफलता के इसी कल्पित स्वप्न में मस्त होकर मैं घनिष्ठ से घनिष्ठ मित्रों के निन्दावाक्य या उत्साह-नाशक वाक्य सह जाता था और जो विचार करने पर ठीक लगता था वहीं करता था । गुजराती का यह पद्यांश बहुतबार पढ़ा करता था। . लोकोनी अपकीर्तिमा हृदयनी साची ज कीर्ती बसे ।
सो. हृदय की सच्ची कीर्ति की धुन में लापर्वाही बढ़ाता जाता। इस दृढ़ताको बहुतसे लोग मेरा अभिमान समझते थे, बल्कि मुझे हठी समझते थे । मुझे ही समझनेवालों में मेरे सहयोगी
और स्नेही मित्र भी थे । जब उनसे कोई कहता कि आप पंडितजी को. [मुझे]. समझाइये तब वे हँसकर कहते-पंडितजी तो भगवान