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पत्नी वियोग [२४१. बीमारी का समय, खासकर पहिला वर्ष, मेरे जीवन को काठिन परीक्षा का समय था उन्हीं दिनों महावीर विद्यालय में नौकरी मिली थी पर छः महीने तक पछी नहीं थी इसलिये मेरी दूसरी नौकरियाँ (जैन बोटिंग, श्राधिकाश्रम, जैनप्रकाश की ) भी चार थी । अपरेशन से शान्ता का हाथ कुछ काम न कर सकता था इसलिये दोबार भोजन कराने और दोवार मोसम्मी आदि का रस देने, अथवा यों काहिंय कि स्नेहबश रोगी को बार बार परिचर्या करने चार बार हास्पटिल में जाता था। एक बार करीब पन्द्रह दिन कुल कारणों से ऐसा प्रसंग आया कि उपर्युक्त सब काम करने के अति. रिक्त रोटी बनाना, पानी भरना, वर्तन मटना कपड़े धोना, आदि काम भी करने पड़े। फिर इसके साथ था नजगत का सम्पादन और काफ़ी पत्र-व्यवहार और अध्ययन । सुबह । चार बने से रात्रिके दस बजे तक अविधान्त परिश्रम और छोटे बड़े सभी तरह के कामों को समुदाय ने जीवन की अच्छी परीक्षा ली, पर इसे सत्येश्वर की असीम कृपा ही समझना चाहिये कि मुश सखा तुन्छ प्राणी उस परीक्षा में यथासम्भव उत्तीर्ण हुआ। इतना ही नही कटोर परिस्थितियों का सामना करना सदा के लिये राम सहज हो गया बल्कि उसमें आनन्द आने लगा। आज याद आता है कि मिरज सरीखे अपरिचित स्थान में शान्ता को परिचर्चा के साथ रोटी पकाते तथा अन्य काम करते हए भी जमेल अछे अटेख लिख सका था । उही दिन में अली तरह अनुमय पर सका था कि सेवा करते करत मा रोटी बनाने मनात पपने पर मिलने थेट जाना सेवा विभाग और लिखने