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पत्नी वियोग
[२३९ कुछ नहीं कह सकते अमुक से पूछो । इस प्रकार अमुक जी से दिमुक जी और दिमुक जी से अमुक जी को तपासने तपासते और उन सब को समझात समझाते एक घंटा लगा तब कहीं मैं मोसम्मी का रस दे पाया । रस देते ही मुंह में से खून आना बन्द हुआ, धीरे धीरे होश आया उनने मुझसे बात की। हास्पटिलबालों की लापर्वाही और वेजिम्मेदारी से और सहानुभूति न होने से पिता जी को सात घंटे तक तकलीफ उठाना पड़ी। इस लापर्वाही से वे मर भी सकते थे। वहां जाकर जो मुझे अनुभव हुए और लोगों से मिलने से जो पता लगा उससे यह कहा जासकता है कि बहुतसे गरीबों के लिये कदाचित् ये मोतके नजदीकी रास्ते हैं ।
हास्पटिलों की योजना बड़ी अच्छी और आवश्यक पर उनमें काफी सुधार की जरूरत है । रोगी को और उसके पालक को सहानुमति की बहुत आवश्यकता है, हर एक कार्यकर्ता में यह होना चाहिये, रोगी के संरक्षकों को रोगी की वास्तविक स्थिति से परिचित कराना चाहिये, इनाम देनलेने की प्रथा नर होना चाहिये, चिकित्सा सरती से सस्ती होना चाहिये।
आमत्या में इन सब बातों के माध्य करने की जरूरत नहीं सिपहन सुधारों की तरफ संकेत किया जा सकता है।
का से लौटकर कुछ मित्रों को सलाद में मासकार बाजा आशन के अधिष्ठाता म. देवचन्दनी की मला जलचिकिम्मा का विचार किया । जलचितिमा के दायर तो यहां नहीं, मगि मैन बटर नागने पी अभिफिला या अपयन किया