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, आत्मकथा . कार्य करने लगना और पीछे सबके सामने उसकी निंदा करना उचित नहीं । प्रारम्भ का एकाध वर्ष ऐसा समय है जिस पर जीवन भर.का भविष्य निर्भर है। . . नव-पतियों से मैं कहूँगा कि भूल करके भी पुरुपत्र का घमंड न दिखलाना. । पत्नी तुम्हारे घर में मेहमान है और वह मातापिता स्वजन आदि के वियोग का कष्ट तुम्हारे प्रेम से ही भूल सकती है । उसकी योग्यता को प्रशंसा करना, उसकी रुचि के अनुसार रुचि बनाना तुम्हारा कर्तव्य है और दाम्पत्य-सुख के लिये आवश्यक है । हाँ, इस बात का खयाल रखना कि तुम्हारे प्रेम का वल पत्नी में .प्रमाद न. भर दे, वह अपनी जिम्मेवारीयों से जी न चुराने लगे, गुरुजनों की उपेक्षा या अपमान न करने लगे। ऐसी अवस्था में प्रेम प्रदर्शन की डोर को थोड़ा खींच सकते हो। परन्तु गालियों और हस्तचालनका प्रयोग कभी न करना । इससे उसमें धृष्टता आजायगी और तुम्हारी शक्तियाँ भोथली पड़ जायेंगे। .. नव-पत्नियोंसे मैं कहूंगा कि तुम्हारे लिये घर नया अवश्य है, परन्तु तुम यहाँ मेहमान नहीं हो । अब तो यहाँ ही रानी हो, मालकिन हो, धरकी सुख-शान्तिकी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है । तुम इस पदके कहाँतक.योग्य हो, इसके लिये तुम्हारी परीक्षा होती है, उसे धैर्य से पार करना होगा । तुम अपने. गौरवको मत छोड़ो, परन्तु अहंकार भी . मत रक्खो । हो सकता है कि पितृगृह वैभवशाली हो; किन्तु उसके साथ इस नये .घरकी तुलना मत करो समझलो कि वह. तुम्हारा पूर्वजन्म था । उसके साथ तुलना. करके स्वयं दुःखी हो सकती हो, दूसरोंको दुःखी: कर सकती हो,. थोड़ाः