Book Title: Aatmkatha
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 258
________________ २४६ ] . आत्मकथा लेकर प्रेम के साथ धीरे धीरे घंटों लेक्चर देता । वह मेरी फिलासफी कितनी समझती थी इसका मैंने विचार नहीं किया । उसे इतना अवश्य मालूम होता था कि मैं उससे प्रेम करता हूँ और प्रेम से ही सुधारना चाहता हूं । इसका जो सुन्दर परिणाम हुआ वह यह कि उसमें धृष्टता नहीं आने पाई । मैं नहीं कहता कि हर एक दम्पति को ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है, कोई कोई तो इससे विलकल भिन्न दशा में होते हैं, परन्तु हमारी कौटुम्बिक दशा ऐसी है कि दाम्पत्य जीवन का प्रभात कुहरे से छाया रहता है इसलिये सम्हलकर चलने की ज़रूरत होती है। - यहाँ मैं वृद्धजनों से कह देना चाहता हूं कि आप लोग यह भय निकाल दें कि लड़का हाथ से निकल जायगा । नव-दम्पति को अधिक से अधिक प्रेम और स्वतन्त्रता से रहने दें । खयाल सिर्फ इस वातका रक्खें कि उनके ऊपर कर्तव्यका जो आवश्यक भार है उसे वे फेंक न दें। अगर आपने उनके हृदयों को तोड़ने की कोशिश की, उनके साथ बच्चों की तरह वात्सल्य न दिखलाया तो इससे लड़के का मन आपकी तरफ न आ जायगा । वह अपनी पत्नी को दुष्ट समझकर विरक्त और दुखी हो सकता है, परन्तु आपसे स्नेह नहीं कर सकता । कदाचित् उनमें से कोई दुराचारी भी बन सकता है । यदि ऐसा न हुआ तो प्रतिक्रिया होगी। आप दम्पति के बीचमें जितना अधिक कूदने की कोशिश करेंगे वे उतना ही आपको धकियानेकी कोशिश करेंगे । इससे वधू के मनमें एक प्रकारका वैर जम जायगा, जो कि जीवनव्यापी होगा । कुछ समय बाद. जब उसकी शक्ति बढ़ जायगी तब इस वैरका बुरा परिणाम होगा।

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