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आत्मकथा सकते हैं । हाँ, स्त्रियाँ भी मनुष्य हैं, शिक्षण का आनन्द उन्हें भी मिलना चाहिये, अपने पैरों पर खड़ी होने का उन्हें भी हक है इनलिये स्त्रीशिक्षा का प्रचार अत्यावश्यक है । विवाह के समय हमें अपनी सहयोगिनी के शिक्षणका भी खयाल रखना चाहिये । परन्तु विवाह के बाद वह जैसी हो उसी सन्तुष्ट होकर उसके अनुकूल वनने की और उसे अपने अनुकूल बनाने की कोशिश करना चाहिये।
यहां मैं नवपत्नियों से भी कहूँगा कि यदि आप लोग प्रेम, आदर और अधिकार चाहती हो तो इसके लिये योग्यता प्राप्त करनी होगी। यदि आप शिक्षित है तो इसका यह अर्थ नहीं कि आप आराम करें । जीवनोपयोगी कुछ न कुछ कार्य जैसे पुरुपको करना पड़ता है, वैसे ही आपको भी करना चाहिये । आप सभाओं में जाओ, व्याख्यान दो, लेख लिखो, शास्त्रार्थ करो, यह सब बहुत अच्छा है; परन्तु ये सब काम फुरसत के हैं। गृहप्रवन्ध पहिला काम हैं, इसके लिये मजदूरी करना पड़े तो भी आप पीछे मत हटो। जो त्रियाँ घरका काम तो सव सम्हालती हैं, परन्तु पतिके अनुरूप विचारकता और शिक्षण में आगे नहीं बढ़तीं, वे भूल करती हैं। उनका कर्तव्य है कि वे समय निकालकर. योग्य बने; अन्यथा उनके व्यक्तित्वको धक्का लगेगा। आश्चर्य नहीं उनकी गिनती मजदुरिनोंमें हो जाय । पत्नी का अर्थ है मालकिन । जो मालकिन है उसका काम कोरी पंडिताई से या कोरी मजदूरीसे नहीं चल सकता, उसमें दोनों होना चाहिये ।।
. अब एक बात सुधार के विषय में और कहूँगा । हम लोग उस प्रान्त के हैं. जो सुधारकी दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ है । पर्दा