Book Title: Aatmkatha
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 290
________________ २७४ ] आत्मकथा. मेरे लिये एक, योग्य सम्बन्ध की चर्चा तभी से चल रही थी। जब मैं बम्बई में था: ।। श्री वेणुवाईजी (अव वीणादेवी सत्यभक्त) एक बार..एक महिला : परिषत् की अध्यक्षा हुई उसमें उनका जो भाषण: हुआ उसमें उन्होंने समाज सुधार का ऐसा उग्र समर्थन किया कि वहां परिषत् में आये हुए अनेक विद्वान प्रोफेसर जज आदि को भी आश्चर्य हुआ । उनमें बहुत से मेरे मित्र भी थे । उन मित्रों की इच्छा हुई कि.मेरा और वेणुवाई का विवाह हो जाय तो यह सम्बन्ध सब से अच्छा रहेगा। उन्हीं की मार्फत यहःसन्देश संकेतरूप में मेरे पास पहुंचा। . पर.पं. वेणवाई का चरित्र ऐसा उज्ज्वल रहा था कि उनके सामने विवाह का प्रस्ताव कौन रक्खे यही समस्या हो गई इसीलिये यह सम्बन्ध टलता रहा। . . . . वेणुबाई से मेरा दस वर्ष पहिलें का परिचय था। वे सन् २६-२७ में बम्बई के श्राविकाश्रम में पढ़ती रहीं थीं, वहीं से उनने नार्मल पास किया था, संस्कृत परीक्षाएं भी पास की थी, सर्वार्थसिद्धि और गोम्मटसार तो उनने मुझ से पढ़कर पास किया था मेरी पत्नी स्व.शान्तादेवी के साथ उनका अच्छाः स्नेह और सख्यभाव था वेणुवाई और मेरी उम्रमें सिर्फ तीन-चार वर्ष का अन्तर था इसलिये समवयस्कता भी थी, लम्बे अर्से के परिचय से मैं वेणुबाई के शील सदाचार में अटूट विश्वास रखता था, यह सब कुछ था फिर भी डेढ़ वर्ष तक यह सम्बन्ध टलता गया । पहिले तो कुछ दिनों तक इसी लिये कि यह बात उठाये कौन ?. बाद में किसी तरह जब यह प्रश्न सामने आया तो इसलिये यह बात' ढीली होगई कि वणुबाई का

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