Book Title: Aatmkatha
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 300
________________ २८६ ] आत्म-कथा औरचाह नहीं राजा बन जाऊँ या दुनिया के सिर का फल । चाह यही है सब में मिलकर मेरा तेरा जाऊँ भल ॥ सारी दुनिया देश बनाऊँ, वन विश्वहित के अनुकूल | जिस पथ से मानवता आवे उस पथ की वन जाऊँ धूल || अगर इस चाह का थोड़ा बहुत अंश सफल हो गया तो एक साधारण मानव जीवन की असाधारण सफलता कही जा सकती है | उस दिन मैं अपने जीवन को सफल समझंगा जिस दिन सिर्फ मुँह से नहीं किन्तु मन से, पंडिताई के बलपर नहीं--अनुभव के वलपर यह गा सकूँगा। .. मैंने प्रभुका दर्शन पाया। 'परमेश्वर अल्लाह गॉड का भाषा भेद भुलाया ।। मैंने प्रभुका दर्शन पाया ॥१॥ मन्दिर मसजिद गिरजाघर में दिखी उसीकी छाया । पूजापाठ नमाज प्रार्थना सब को एक बनाया ॥ मैंने प्रभुका दर्शन पाया ॥ २ ॥ हिन्दू मुसलमान ईसाई एक हुई सब माया । बिछुड़े थे सदियों से भाई सब को गले लगाया ॥ __मैंने प्रभुका दर्शन पाया ॥ ३ ॥ रंग राष्ट्र पुर प्रान्त जाति का सब मद दूर हटाया। मानवता छाई रग रग में भेदभाव विसराया ॥ मैंने प्रभुका दर्शन पाया ॥४॥ सुख-दुख शत्रु-मित्र जो आये मैं सब में मुसकाया ।

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