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आत्म-कथा सहभोज आदि की भी योजना की गई थी। सत्यसमाज के बहुत से सदस्य दूर दूर से अपने खर्च से पधारे थे, सब ने इस विवाह को सार्वजनिक रूप दे दिया था :। इससे मेरी महत्ता कितनी बड़ी सो तो मालूम नहीं, दूसरे लोग भी भूल गये होंगे, पर मेरे ऊपर जो समाज को न भूलने के उत्तरदायित्व का बोझ डाला गया वह अभी “भी लदा हुआ है । सन्मान देकर मित्रगण छुट्टी पा गये पर मुझे जिस बन्धन में बांधगये वह इस जीवन में शायद ही छूटे।। ... गिर जाति में ही शादी होती या कुमारी विवाह होता तय
तो मैं एक.चोर.की . तरह चुपकेसे विवाहोत्सव करता पर इस - विवाह को जो शाही : ठाठ से . कराया उसका सिर्फ यही
मतलब थाः कि. ऐसे सुधारक विवाहों की महत्ता लोग समझें - और सहयोग वेदावें । कुछ ऐसे भी सुधारक थे जिन्हें मैं अपना यह
दृष्टि कोण.न. समझा. सका पर इसे मैंने अपना दुर्भाग्य ही समझा । नीति तो मेरी अभी भी यही है कि विवाहादि उत्सवों में ऐसे खर्च न करना चाहिये जिनका अनुकरण दूसरों को जरूरी हो बैठे और उनकी : गरीबी..उनको लज़ाने लगे । साधारणतः सादगी ही अपनाना चाहिये
: पर:संधार. के किसी ऐसे कार्य को, जिसका विरोध होता हो .:: पर:समाजहित के लिये आवश्यक हो, अधिक से अधिक समारोह के
साथ करना चाहिये । हां,. हर हालत में असह्य आर्थिक हानि न .
करना चाहिये न ऋण लेकर उत्सव करना चाहिये ।। . ... ... ..मेरे विवाह के समर्थकों में भी ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें सन्देह ' था कि विवाह हो जाने के बाद कदाचित मैं नये संसार में ही न
रम जाऊ और आश्रम आदि का कार्यक्रम कहीं समाप्त न हो जाय।