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आत्मकथा
को अलग क्यों करना चाहिये ? अलग करने से सब काम बिगड़ जायगा | अगर मैंने कुछ श्वेताम्बर मुनियों को पढ़ाने की सेवा से इनकार न किया होता, कुछ मेम्बरों के घर जाकर उन्हें अपनी बकालत करने को समझाया होता तो इसमें सन्देह नहीं कि कमेटी में मेरे समर्थकों का काफी बड़ा बहुमत होता, पर सत्यसमाज की स्थापना करने से इस प्रकार अपने गौरव को धक्का लगाने की इच्छा नहीं रह गई थी क्योंकि इससे कुछ अंशों में सत्यसमाज का भी अपमान होता था, साथ ही सत्याश्रम की स्थापना का निश्चय होने से नौकरी की इच्छा नहीं थी, स्थान मिलने पर मैं खुद ही छोड़नेवाला था इसलिये कमेटी की हरकतों को एक दर्शक की तरह देखता था अर्थात् सुनता था । कमेटी के सामने भी मेरी इस लापर्वाही की बात पहुँच गई थी ।
प्रस्ताव रद्द होनेपर कमेटी में कुछ दलबन्दी सी हो गई । फिर
भी चर्चा कुछ शान्त रही । इतने में मेरी पत्नी का देहान्त हो गया इसलिये शिष्टाचार के कारण भी कुछ महिने यह प्रश्न न उठाया गया। बाद में जब यह प्रश्न उठा तब किसी ने कह दिया कि इस प्रश्नको क्यों उठाते हो -- वे खुद ही नौकरी छोड़नेवाले हैं वे अपना स्वतंत्र आश्रम कुछ महीने में बनायेंगे तब उनको अपनी तरफ से अलग करके क्यों वदनामी मोल ली जाय । इस बात पर फिर प्रस्ताव स्थगित रहा ।
इसमें सन्देह नहीं कि मुझे नौकरी छोड़ना थी पर अगर न छोड़ना होती तो मेरी स्वतंत्र विचारकता के कारण विद्यालय छुड़ा देता. और वास्तव में उसने मुझे अलग ही किया, भले ही शिष्टाचार
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