Book Title: Aatmkatha
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 285
________________ नया संसार [ २७३ क्योंकि वर्धा के अनुभव अभी पूरे नहीं हुए हैं न उन अनुभवों से A इतना दूर पहुँच पाया हूँ कि एक दर्शक की तरह उनके विषय में कुछ कह सकूं | इसलिये यह प्रकरण जल्दी समाप्त कर देता हूं । ३० नया संसार पत्नीवियोग के बाद कुछ दिन तक शोक रहा, फिर एक तरह का वैराग्य आया, एक तो नौकरी आदि छोड़ने का पहिले से निश्चय था फिर यह घटना घटी, दैव ने संन्यास लेने का पूरा योग मिला दिया । मैं सोचने लगा कि अगर यह रंग चार छः महीने चढ़ा रहा और इतने समय तक काम सोता' पड़ा रहा तो समझ लूंगा कि वह मर गया है और मैं निश्चिन्तता से कर्मयोगी संन्यासी बन सकता हूँ । पर अट्ठाईस उन्तीस दिन के बाद ही मालूम होगया कि वह मरा नहीं है । सिर्फ सुप्त हैं और वह आज नहीं तो कल गर्जेगा । तत्र मैं चौकन्ना हुआ और नये सिरे से इस समस्या पर · . " विचार करने लगा ।" उस समय मेरी उम्र छत्तीस वर्ष की थी । दूसरे देशों में यह उम्र जवानी के मध्याह्न के पहिले की है, इस देश में मध्याह्न के बाद की, मेरे लिये मध्याह्न की थी इसलिये इधर और उधर चित्त डाँवाडोल हो रहा था । एक मार्ग यह था कि विवाह न किया जाय काम को दबाने के लिये बाह्य तपस्याएँ की जॉय, से बचा जाय । दूसरा मार्ग यह था कि विवाह पत्नी को भी सत्य समाज के प्रचार में सहायक बनाया जाय, इस प्रकार स्त्री जाति की तरफ से भी निर्भय रहा जाय । दोनों ही पक्षों स्त्रीमात्र के संसर्ग किया जाय और P

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