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नया संसार . [ २७५ ऐसा नहीं था जिसे मैं स्वीकार करता क्योंकि एक को छोड़कर सब _ के सब सम्बन्ध परवार जाति की कन्याओं के थे, परवार जाति में ‘जन्म लेने के कारण मैं परवार कन्या से शादी करने को तैयार न
था, क्योंकि जातिवन्धन तोड़ने के विरोध में भेनं जितना आन्दोलन किया था वह सब निष्फल हो जाता अगर मैं अवसर आनेपर परवार जाति में ही शादी कर लेतां । यों भी जाति बन्धन को स्वीकार करना मैं एक तरह का पाप समझता हूँ, इस जातीयता ने नानारूप धारण करके मनुष्य जाति के जैसे टुकड़े टुकड़े किये हैं, मनुष्य हृदय को जिस प्रकार संकुचित पक्षपाती और अन्यायी बनाया है उसे देखते हुए मैं इसे मानव-जाति के लिये एक बड़ा से बड़ा , अभिशाप मानता हूँ। - सहचरी के चुनाव-क्षेत्रों का क्रम मैंने इस प्रकार बनाया था-१-दूसरी जाति और दूसरे धर्म की विधवा, २-दूसरी जाति की" जैन-विधवा, ३-दूसरी जाति की दूसरे धर्म की कुमारी, ४-दूसरी जाति की जैन कुमारी, ५-परवार जाति की विधवा ।
परवार जाति की कुमारी के लिये कोई स्थान नहीं था इसके लिये मैं किसी भी हालत में तैयार न था इसलिये इतने सम्बन्ध आये और व्यर्थ गये।
विजातीय विवाह और विधवा-विवाह इन दोनों को मैं एक ही साथ सार्थक करना चाहता था, पर अगर ऐसा सम्बन्ध न मिलता तो मैं विधवाविवाह की अपेक्षा विजातीय-विवाह को अधिक . पसन्द करता क्योंकि राष्ट्रकी सामाजिक समस्या विधवाविवाह न होने से इतनी जटिल नहीं है जितनी विजातीय विवाह न होने से है।
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