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आत्मकथा में कुछ कुछ लाभ और कुछ कुछ हानियाँ थीं ।
. . अविवाहित जीवन बिताने में प्रचार की आधिक सम्भावना थी, जनता की मनोवृत्ति के अनुसार पूजा प्रतिष्ठा भी अधिक मिल सकती थी। पर जिन वाह्य तपस्याओं का महत्व में कम करना चाहता था उनका ही महत्व बढ़ाना पड़ता या बढ़
जाता, गृहस्थ जीवन में भी साधुता रह सकती है यह पाठ दुनिया . भूली हुई है, उसकी यह भूल सुधारने के लिये प्रयत्न न हो पाता, बदनामी के कार्य से बचे रहने पर भी साधारण निमित्त से ही मुझे बदनाम करने का विरोधियों को अवसर मिलता । विवाहित जीवन में ये लामालाभ बदल गये। .
पर लाभालाभ की बात किनारे रहे, मुख्य बात मनोवृत्ति की ही कहना चाहिये, इसे, एक तरह से कमजोरी भी कहा जा सकता है। हां, पर नं तो यह अन्याय था न एकान्त से हानिकर, लाभ भी थे ही, इसलिये मैंने विवाह करने का ही निश्चय कर लिया।
पत्नीवियोग में सहानुभूति के जो पत्र आये उनमें चौदह पन्द्रह पत्र कन्याओं के अभिभावकों के थे. जिसमें उनने अपनी बेटी या बहिन के साथ शादी करने का प्रस्ताव किया था, बाद में कुछ और सम्बन्ध भी आये। आश्चर्य तो यह है. कि इस प्रकार सम्बन्ध करने का प्रस्ताव रखनेवालों में वे लोग भी थे जिनने मेरी सुधारकता को और मुझे सदैव कोसा था, इस बात को लेकर जिनने. निन्दा की थी। मेरे इतने विरोधी. होनेपर भी मेरे विषय में उनके मनमें इतना सन्मान था इस बात से मुझे आश्चर्य ही हुआ। । सम्बन्ध तो बीस-बाईस आ गये पर उनमें एक भी सम्बन्ध