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दाम्पत्य के अनुभव [२५३ पति अधिक निगकुल रह सकता है । दोनों में इससे प्रेमकी मात्रा भी अधिक रहती है।
इस प्रकार मिटकर खर्च करने में या आर्थिक प्रबंध करने में जो आनन्द है वह लखपति बनकर हजारों खर्च करने में भी नहीं है। सन् १९१९ में जब मैं बनारस में अध्यापक नियुक्त हुआ, उस समय मेरी उम्र १९ वर्ष की थी । पत्नीको साथ ले गया । बड़ी बड़ी उमंगें थी; परन्तु वेतन था सिर्फ मासिक ३५)। मैं वेतन लाकर पत्नी के हाथ पर रख देता । मेरी पत्नीने और मैने भी इतने रुपये अपने स्वामित्र में कभी न देखे थे । उन दिनों मॅहगाई खुब था- २) सेर घी मिलता था, अनान वगैरह भी मेहगा था। इतने पर भी मेरी पत्नी मुझे इतना अच्छा भोजन कराती जितना मैंने कभी नही किया था । नाटक देखने का दोनों को शोक था । १) महीना नाटक ही खा जाता । फिर भी यह ५-७ रु. महीने बचा लेती । थोड़े से रुपये थे, इसलिये सारी जी का प्रति. दिन हिसाब लग जाता था | गरीबी अमीरीका आनन्द था। यदि
आर्थिकसत्र उसके हाथ में न होता तो यह आनन्द कमी न आता। मैं समझता शिप्रलेक पतिको ऐसा ही उदार बनना चाहिय और प्रत्येक पत्नी को ईमानदार और नि:स्वार्थ बनना चाहिये।