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पत्नी वियोग
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लेवा की, बहुत से डाक्टरों को दिखाया, पर किसीकी समझ में न आया कि बीमारी क्या है । किसीने डिप्थीरिया कहा किसीने कुछ। उसके मरने के बाद ही पता लगा कि अस्थिक्षय से उसका देहान्त हुआ।
मरने के आधे घंटे पहिले तक डाक्टर इतना आश्वासन देते रहे कि मैं कल्पना भी न कर सका कि वह घंटे दो घंटे की मिहमान है। अंतिम समय में ही एक डाक्टर ने कहा She is going (वह जा रहा है ) तब मैं समझा । इस समय मेरे दिल को अकस्मात् रतना झटका लगा कि थोड़ी देर को मैं शून्य सा बन गया । अगर निराशा धीरे धीरे दी गई होती तो इतना झटका न लगता खैर, इस तरह देव के साथ छः वर्ष युद्ध करके भी अंत में में परास्त हुआ।
इस पराजय का मेरे ऊपर क्या असर हुआ और मेरे आगामी कार्यक्रम को कितना धका लगा और उसे मन किस प्रकार नाहने का निश्चय किया इसके विषय में मैंने सत्यसन्देश में निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखी थीं।
मुझे सन्तान की इच्छा नहीं थी, सौन्दर्य की चाह नहीं थी, अविद्वत्ता को भी निभा सका था, किन्तु उसकी जरूरत थी, क्योंकि उसके रहने से में सीसमाज में निर्भयता से काम कर सकता था, अधिक विश्वसनीय हो सकता था असंयम का भी बिलगुल भय न था । इसके अतिरिक्त मुख दुःख में एक ऐसा साथी भी था जिसने मेरे जीवन के प्रायः सभी जीवित दिन देखे ये "
मैं यह तो नहीं मानता कि जो बुद्ध होता है सब अच्छे के लिये होता है परन्तु इतना अवश्य मानता हूं शियरी से बरी