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आत्मकथा में रोगी से और रोगी के अभिभावक से बहुत लड़ना पड़ेगा इसलिये दोनों तरफ से आक्रमण करना चाहिये ।
बम्बई की चिकित्सा से निराश होकर शान्ता को मिरज ले गया वहाँ पम्प से एक सेर से भी अधिक पीप कमर के घाव में से निकाली गई और दवा भरदी गई, वहां भी यह न बताया गया कि बीमारी क्या है । पर मिरज के डाक्टरी स्कूल के एक अध्यापक से कुछ परिचय हो गया था उनने बताया कि शान्ता को अस्तिक्षय की बीमारी है । कमर के पास जो घाव था वह रीढ़ के क्षय का था । . अब कहीं मैं उस गम्भीरता को समझ सका । डाक्टरों की इस नीतिपर मुझे बड़ा खेद हुआ कि उनने बीमारी का पता अभी तक मुझे नहीं दिया। फीस ले लेकर भी यही कहते रहे कि फोडा हैं अच्छा होजायगा । उनने शायद यह समझकर कि बीमार का आभिभावक घबरा न जाय, नाम न बताया होगा पर उनकी इस मूर्खतापूर्ण दयालुता का. परिणाम यह आया कि उनके हाथों से एक प्राणी की दुर्दशा होगई या हत्या ही होगई । बहुत से डाक्टर, जिनमें बड़े बड़े डाक्टर भी शामिल किये जा सकते हैं, अपनी अपूर्णता को भी नहीं समझना चाहते वे शायद यह भी नहीं सोचना चाहते कि उनकी चिकित्सा के सिवाय भी चिकित्सा है और रोगी के अभिभावक को रोग का ठीक ठीक परिचय देकर उसे इच्छानुसार चिकित्सा का अवसर देना चाहिये ।
हरकिसनदास हास्पिटल में ऊँचे डाक्टर थे । एम.बी.बी.एस तो वहां कम्पाउन्डर सरीखा काम करते थे। अपरेशन आदि करने