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पत्नी वियोग
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के लिये एफ. आर. सी. एस. डाक्टर थे, उन में भी चुने हुये, फिर भी वे अपनी पंडिताई की धुन में आधिक्षय के केस का अपरेशन करते रहे। उन की इस नासमझी, प्रमाद या अहंकार को क्या कहा जाय ? आस्थिक्षय में घाव के ऊपर से भी अगर हाटी काटी जाय तो भी लाभ होने की कम सम्भावना रहती हैं फिर आसपासकी हड्डी छील देने से क्या लाभ ? अपरेशन ने शान्ता के हाय को ऐसा वेकाम करदिया कि दाहिना हाथ फिर कभी ऊपर न जा सका और बीमारी तो बनी ही रही।
मिरज से लौटकर कुछ दिन बबई रहा फिर मालूम हुआ कि पने के पास मळवली स्टेशन से १॥ मैल दूर काली में एक सेनोटीरियम है वहां क्षय के रोगी स्वस्थ हो जाया करते हैं। वहाँ भी रक्खा पर डेढ़ माह तक देखा प्रतिदिन बजन घटता ही जाता था । एकदिन डाक्टर ने एकान्त में लेजाकर मुझसे कहा-आप कहें तो हम इन्हें छः महिने तक यहाँ रक्खें पर असली बात यह है कि रोग अब वश का नहीं है रोगी अगर अच्छी तरह से रहे तो अधिक से अधिक एक वर्ष तक रह सकता है। अन्यथा : महिने काफी है।
मेरा भेटामा कुटुम्ब था इसलिये जर से समझदार हुआ तय से किसी आत्मीय की मौत की कल्पना तक का मौका न आया था। डाक्टर की बात से मेरे मन पर (मुदापर नही) कैसा वापान हुआ इस का अनुभव ही किया जा सकता था।
टाटर के सामने अपनी व्यायुरता विमान में साल आबकि उसी सवादिता के लिये व पदनाद भी