________________
जैनधर्म का मर्म [२२३ अकस्मात् मैं भी पहुँच गया, उनने जैनधर्म के विषय में कुछ प्रश्न किये । मैंने कहा-साधारणतः इन प्रश्नोंके विषय में जैन पंडितों का जैसा उत्तर होता है वैसा ही उत्तर दूं या अपने नये विचारोंके ढंग से उत्तर दूं। उनने कहा- पुराने ढंग के उत्तर नो मैं बहुत सुन चुका हूं मैं आपके स्वतंत्र विचार सुनना चाहता हूं। जब मैंने नये ढंग से उत्तर दिये तब वे बहुत प्रसन्न और चकित हुये । उनने कहा-आप तो अपने असाधारण विचार इस तरह क्यों छिपाये हुये है इन्हें समाज के सामने क्यों नहीं लाते ?
मैंने कहा कि जैनधर्म के सभी अनुयोगों के विषय में मेरे खास और गम्भीर विचार है। आज तक समाजसुधार आदि के विषय में जो मैंने गम्भीर विचार समाज के सामने रक्खे है उनपर मैंने वो चुपचाप विचार किया है फिर पूरा निश्चय होजाने पर
और काफी प्रमाण एकत्रित होनेपर मैंने उन्हें समाज के सामने रक्खा है । जैनधर्म के विषय में जो मैं विचार प्रगट करने वालाई वे आज तक के विचारों से कई गुणे क्रान्तिकारी है इसलिये उन्हें प्रगट करने में और भी अधिक सावधानी रखना चाहता हूं पांच वर्ष बाद में वे विचार समाज के सामने रक्खंगा।
पाँच वर्ष !' नहीं साहिब, पांच वर्ष बहुत होते हैं आप को अगर फिर विचार करना है तो खुशी से कीजिये पर एक बार उन्हें समाज के सामने रख तो दीजिये फिर उनपर जब चर्चा चले तब उसपर विचार करके आप फिर सुधार करना। पांच वर्ष तक आप इन विचारों को रोककर रखेंगे, शिन न जाने पांच वर्ग में क्या हो?