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विजातीय विवाह आंदोलन [ १८१ चलें, यहां पचास आदमी तो बैठ ही सकते हैं उन्हें आप व्याख्यान मुनावै । मुझे. भी. यह बात जची । अन्तम डेरे पर करीब पचास आदमियों के सामने विजातीय विवाह पर व्याख्यान हुए। यहां कछ नरम विरोधी भी आगये थे जिनका विरोध करीब २ नष्ट होगया और वे मेरे समर्थक होगये।
एकदिन पानीपत भी गया, वहां के व्याख्यान से लोग इतने सुश हुए कि उनने आग्रह किया कि आप यहीं जैन हाइस्कूल में अध्यापक होजायें । मैं इन्दोर से मन ही मन कुछ ऊब गया था इसलिये मैंने पानीपतवालों को स्वीकारता देदी और बातों ही बातों में यह तय होगया कि मैं दिवाली के पहिले पानीपत आजाऊंगा। यहां इन्दोर की अपेक्षा सुधारकों की संख्या कुछ अधिक थी।
दिल्ली से शानदार विदाई हुई। बड़ी रात तक लोग प्लेटफार्म पर मेरी तारीफ में कविताएं पढ़ते रहे और गाड़ी छूटने पर उनने फूलों की वर्षा से (जिनमें चांदी के फूल भी बहुत थे) डब्बा भर दिया । जब गाड़ी चली तब मुझे अनुभव हुआ कि मेरी हिम्मत अब काफी बढ़ गई है और मैं विरोध की हर परिस्थिति का सामना कर सकता हूँ। .
. वहां से आगरा आया । यहां भी मेरे व्याख्यान का नोटिस बँटा और तूफान के आसार नजर आने लगे । व्याख्यान तो रात, को था पर दिनको ही लोग झगड़ने के लिये आये । पर व्याख्यान के प्रबन्धक मजबूत थे इसलिये कुछ कर न सके । शामको व्याख्यान हुआ। मुझे व्याख्यान और शंका-समाधान. के लिये लगातार साढ़े तीन घंटे तक खड़ा रहना पड़ा । मैंने कह दिया था कि जब