________________
बम्बई में आजीविका [ १८७ बम्बई आकर मैंने इसकी तैयारी भी की। नियम कर लिया कि कई माह तक गरम पानी ही पियूँगा। मिठाई खाना बिलकुल बन्द, घर में भी पुड़ी वगैरह खाना बन्द, केला आदि फल भी बन्द; फलों में सिर्फ मोसम्मी रक्खी । इस प्रकार तपस्वी जीवन बिताने से मेरा स्वास्थ्य बिलकुल ठीक रहा और एक तरह से मैं बम्बई के पानी की तरफ से निश्चित होगया । तीन चार महीने बाद गरम पानी भी छोड़ दिया तथा धीरे धीरे दूसरी चीजें भी लेने लगा।
इन्दोर से जब चला था तब यह सोचकर चला था कि बम्बई में कुछ निश्चित वेतन और निश्चित काम होगा । पर यहां आने पर मालूम हुआ कि मेरे लिये नौकरी दूढ़ी जायगी इसलिये जानेपर कुछ दिन बेकार ही रहना पड़ा । पर सेठ ताराचन्दजी तथा मगनबाई जी का मेरे लिये काफी प्रयत्न था इसलिये विशेष चिन्ता न थी।
जाने के दूसरे तीसरे दिन मगनबाई जी के आश्रम में परीक्षा लेनेके लिये बुलाया गया । मैंने कई घंटे तक परीक्षा ली और हर प्रश्न पर कुछ समझाया भी । इस प्रकार अपनी पंडिताई और अध्यापन कला का विज्ञापन भी हो गया । निश्चय हुआ कि श्राविकाश्रम में सर्वार्थसिद्धि पढ़ाने के लिये मैं रक्खा जाऊंगा, एक घंटा पढ़ाना होगा ३०) महीना मिलेगा । इस प्रकार ३०) महाँना पाकर बेकारी से पिंड छूटा।.
वीस पच्चीस दिन बाद जैन बोर्डिंग में भी पढ़ाने का काम मिल गया वहां से भी ३५) महीना निश्चित हुआ ।
. इसी समय मुझे स्व. श्री सूरजमल लल्लूर्भाइ से मिलाया गया