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२.०६- ]
से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
आत्म-कथा
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अब किसी सुधार आन्दोलन के विरोध में मुनिवेशियों का उपयोग है जितना साधारण
उपयोग निरर्थक है अथवा इतना ही आदमी का होता है ।
स्थितिपालकों ने सुधारकों का विरोध करने के लिये मुनिवेषियों का जो उपयोग किया उससे कुछ समय के लिये सुधार आन्दोलन को धक्का अवश्य लगा; उससे कुछ समय और शक्ति वर्बाद भी हुई पर इससे सुधारकों की अपेक्षा स्थितिपालकों का अधिक नुकसान हुआ, अन्त में सब के पाप का फल समाज को भोगना पड़ा | अगर मुनिवेषियों की ओट न लीजाती और स्वर्गीय पं. गोपालदासजी के समय में पंडितों की जो मनोवृत्ति थी वही रहती तो कम से कम निम्नलिखित लाभ अवश्य हुए होते |
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१ - मुनिवेषियों में उच्छृंखलता दुराचार आदि का इतना प्रवेश न. हुआ होता जितना होगया ;
२ - मुनिवैषियों का उपयोग समाज हितकारी अनेक कामों में हुआ होता ।
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३- समाज में अन्धश्रद्धा न वढ़ी होती और उसके पीछे पीछे लाखों रुपयों का जो नाश हुआ वह बहुत कम हुआ होता ।
४ - मुनि संस्था व्यवस्थित और संगठित बनी होती और उसमें शिक्षा का प्रचार हुआ होता ।
५ विद्वानों में विचारकता और उनके जीवन की उपयोगिता: अधिक रही होती । ..
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