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आत्म-कथा अधिक कष्ट मालूम होता था । बम्बई आने पर. चार-पांच वर्ष में काफी आन्दोलन किया, निर्भयंता और भी बढ़ गई और ऐसा अनुभव करने लगा कि मैं अब निःप्रतिद्वन्द हूँ । अब लिखने का क्षेत्र काफी फैल गया - हर विषय पर निर्भयता और निःसंकोच भाव से कलम चलाने लगा। लिखने के लिये नई नई बातें ढूँढना या लेखन में इतना परिवर्तन करना कि उसमें कुछ नवीनता रहे यह प्रयत्न तो सदा से था । फिर भी कभी कभी यह खयाल आने लंगा कि अब तो सब आन्दोलन समाप्त हो गये, कुछ अंशों .में वे कार्यपरिणत भी हो रहे हैं उनको उत्तेजन देने के सिवाय कुछ नया आन्दोलन और चाहिये । कुछ ऐसा मालूम होता है कि . नये नये आन्दोलन खड़े करने का व्यसन हो गया था। सो मैं इसके लिये नया विषय ढूँढने लगा या यों कहना चाहिये कि अभी मैं अपने ध्येय के मार्ग में ही था इसलिये आगे बढ़ने की कोशिश करने लगा। ; . .
आन्दोलनों के विषय में मेरी एक अलग नीति थी। कुछ पुराने सुधारक मेरी इस नीति की आलोचना किया करते थे और
उपदेश भी दिया करते थे कि लिखते.जाओ.कहते जाओ. पर- उत्तर . 'प्रत्युत्तरः खण्डन मण्डन के झगड़े में न पड़ो। मेरे खयाल से यह
नीति ठीक नहीं है क्योंकि अपनी बात बोलने पर जब . विरोधी ___ • उसका खंण्डन करते हैं और हम उनके विरोध का उत्तर नहीं देते.
तो समाज के ऊपर हमारे विचारों की साई की. छाप नहीं रह जाती। विरोधी लोग यह घोषणा करने लगते हैं कि इन्हें तो जो मन में आया सो वकना है सत्यासत्य का निर्णय थोड़े ही. करना