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विविध आन्दोलन.
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है । दूसरी बात यह है कि जब तक उत्तर प्रत्युत्तर के जिये हमारी तैयारी नहीं होती तब तक हम किसी विषय में सर्वांगीण विचार नहीं कर पाते । अपनी अपनी हांकने की चिंता में उचित अनुचित का विचार कम रह पाता है। यही कारण है कि पुराने सुधारकों ने बहुत कुछ लिखकर भी अपने विचारों की छाप जैसी चाहिये वैसी नहीं डाल पाई, पुराने पंडितों के दिल पर अपनी छाप न मार पाई ।
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मेरी नीति हरएक बात पर अन्त तक उत्तर प्रत्युत्तर करने की रही है | इससे समाज के ऊपर तथा विरोधी बन्धुओं के ऊपर तो छाप बैठती ही थी साथ ही सर्वांगीण विचार करने का काफी अवसर भी मिलता था और उसकी चिन्ता रहती थी ।
जिस बात का मैं समर्थन करना चाहता, उसका खण्डन मण्डन में अपने आप ही कर डालता था । अपने विचारों का
आलोचना करता था और हर एक
।
अगर मुझे यह
मालूम पड़े कि में
विरोधी चनकर पहिले मैं खूब आलोचना का उत्तर देता था इस तर्क का या इस विचार का तर्क या विचार छोड़ देता था करने व पहिले ही कर लेता था साध्य अकाट्य होती थी । उसकी मजबूती से भी अधिक बढ़ता था ।
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उत्तर नहीं दे
यह सब विचार
पाता हूं तो ऐसा
विचारों को प्रगट
इससे बात खून साफ और यथा
विचारों का मूल्य
कुछ भाइयों का कहना था कि यो विरोधियों का उत्तर कहाँ तक दिया जायगा । वे तो कुछ न कुछ वक्ते ही रहेंगे हमें तो बहुत सा काम करना है ऐसी चर्चाओं में उलझकर रह जायेंगे तो कैसे चलेगा !