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विविध आन्दोलन २१.३. " ... के नाम से उत्तर दिया. इस प्रकार नाटक के पात्र की तरह नाना रूप धर कर विधवाविवाह प्रचार का खेल खेलना पड़ा।
इस चर्चा में जैनधर्म के अनेक सिद्धान्तों की काफी चर्चा हुई और विधवाविवाह सम्यक्त्र के अनुकूल, अणुव्रत का अंग, सदाचार-पोषक और अनेक तरह से समाज के लिये हितकारी सिद्ध किया गया। यह स्व-चर्चा श्री जौहरीमलजी सर्राफ दिल्ली ने पुस्तकाकार भी छपाई, करीब ३०० पृष्ठों में यह चर्चा निकली।
दो तीन वर्ष तक मुझे विधवाविवाह पर काफी लिखना पड़ा और जब विरोधियों में कोई विरोध, करने के लिये. आगे आने-: वाला न रहा तभी मैंने भी यह चर्चा ढीली. की । ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी को जब कोई चैलेञ्ज देता था तब वह मेरे पास आजाता था और फिर वह सब चर्चा में निपटता था। इस चर्चा का काफी.. अच्छा परिणाम हुआ, अब विधवाविवाह के समर्थन में किसीको लज्जा न रही न.धविराध का. डर रहा ।::;:.... . .. - इन आन्दोलनों के सिवाय सन . १९३१ : तक और भी
विशेष आन्दोलन हुएं । दिगम्बर जैन समाज में. जो : मान्यताएँ. थीं. . उनमें काफी सुधार किया गया । प्रवृत्ति निवृत्ति, लोकाचार का:
का स्थान, आचार शास्त्र में, परिवर्तन, : स्त्री मुक्ति, दिगम्बरत्व, . शास्त्रों में आई हुई वैज्ञानिक मान्यताओं की आलोचना. आदि को
लेकर अनेक लेख लिखे.. जगह जगह चर्चा भी की, पुराने भक्तों का. घृणापांत्र भी, वना, पर ..दृढ़ता और अहंकार . का . ऐसा मिश्रण होगया था कि निन्दा आदि..से डरकर पीछे हटनेमें मौतसे भी.