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विविध आन्दोलन
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जनसाधारण में अन्धश्रद्धा तो होती ही है इसलिये मुनिवेषियों ने उसका लाभ तो उठाया और वे आज भी उठा रहे हैं पर एक बार मोती का पानी उतरा सो उतरा । मुनिष लेनेवालों में न तो कोई · त्यागी था न आत्मार्थी न समाजसेवी, इन सब के कोई न कोई ऐहिक स्वार्थ थे इसलिये फिर :इन्हीं लोगों में आपस में लड़ाइयाँ होने लगी, कइयों के दुराचार इतने बढ़ गये कि बदबू से घोर से घोर अन्धश्रद्धालु भी नाक मुँह सिकोड़ने लगे। स्थितिपालको. को तब भी इनका समर्थन करना. पड़ता था, इन पंडितों के समर्थन.. से दुराचारियों की खूब बन आई पर कब तक चलती आखिर मुनीन्द्रसागर. आदि का ऐसा भंडाफोड़ हुआ उनके , अर्थसंग्रह तथा. अन्य दुराचारों का ऐसा नग्न रूप समाज के सामने आया कि जैन-जगत् के और मेरे उग्रविरोधियों ने भी कहा कि जैनजगत को अपन व्यर्थ दोष देते हैं वास्तव में वह ठीक ही लिखता है। . .
मुनिवेषियों की पूजा अब भी होती है उनके ठाठबाट अब भी छोटे मोटे राजाओं सरीखे हैं पर न तो वह श्रद्धा रही है न वह प्रामाणिकता। सुधारक कहलानेवाले तो जाने दीजिये पर स्थितिपालकों के प्रमुखपत्र भी किसी न किसी मुनिवपी का विरोध किया करते हैं। मुनिवेषियों की निन्दा से ही अंब कोई मुनिनिन्दक या मिथ्यादृष्टि नहीं कहलाता । पर इससे भी बड़ी बात जो हुई वह यह कि उनके वचनों की प्रामाणिकता नष्ट हो गई है। मुनि के शब्दों का विरोध करना आगम विरोध है, ऐसी मान्यता अब नहीं रही है । लोगों ने समझ लिया है कि मुनियों का ज्ञान से. या विचार