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आत्मकथा
...४-विधवा विवाह का प्रचार नहीं करते थे पर कोई उन से पूछे तो वरावर समर्थन करते थे।
५-विधवा-विवाह के प्रचारक थे ।
पंडित लोग पहिली तीन श्रेणी के लोगों को बारबार छेड़ते थे और समाजमें उनको विधवा-विवाह के पक्षपाती के रूप में घोषित करते थे। न. शीतलप्रसादजी उक्त पांच श्रेणियों में से दूसरी श्रेणी के थे। उन्हें इस बात में अधिक से अधिक सताया जाता था । समाओं में उनसे विधवा-विवाह के विरोध में वुलवाया जाता था। पंडित लोग समझते थे कि एक समाज-सेवक व्यक्ति को बार बार अपने दिल को चोट पहुंचाने को विवश करनेमें हमारी जीत होती है । ब्रम्हचारी जी में भी एक तरह की कमजोरी थी, इस तरह वे अपनी इज्जत बचाने में ही कल्याण समझते थे । . एक बार उनने मुझ से . कहा था-मेरे विचार विधवा-विवाह के समर्थक हैं लेकिन मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं उन्हें जीते जी प्रगट कर सकू पर जब मरने लंगूंगा तब लिख अवश्य जाऊंगा । ...... पंडितों को अगर-विधवा-विवाह का प्रचार ही रोकना होता, सुधारकों को गिराने का भाव न होता, तो वे ब्रह्मचारी जी सरीखे लोगों की कभी छेड़खानी न करते, इस तरह उन्हें अपने पक्ष समर्थनमें विशेपलाम हुआ होता । पर ऐसा मालूम होता हैं कि पंडितों को विधवाविवाहके विरोधकी उतनी चिन्ता नहीं थी जितनी सुधारकों ' को गिराकर अपना स्थान समाज में ऊंचा बनाये रखने की चिन्ता
थी। इसी भाव के आवेश में उनने ब्र. शीतलप्रसादजी को इतना